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( १८ ) समयसुन्दरकृतिकुसमाञ्जलि
कोई ईरान को दुख डारक हूइ । रागर द्वष जिते जिणदेव,
सोउ देव सुख कउ कास्क हा॥ श्री वीतराग निरंजन देव,
दया गुण धर्म को धारक हह । समयसुन्दर कहइ भविका भजउ इक,
श्रेयांस तीर्थंकर तारक हइ ॥११॥ जम वाहण कहइ जाण नीर, पणि बहु निरंतर ।
सुपन दीठ शुभ हागि अशुभ, मारग अभ्यन्तर। दसराहै बहु दुख हणइ, राजा हथियारे ।
दूध न धावण देइ, महिष नहीं सुख जमारे ।। कवि एम समयसुन्दर कहै, लाखीणौ अवसर लह्यो ।
वासुपूज्य शरण आव्यउ वही,लांछन मिशि लागी रह्यौ।१२। विमल जाति कुल वंश, विमल सुर चवण विमानं ।
विमल पिता कृतवर्म, विमल श्यामी सुवखानं ॥ विमल कांपेलावास, विमल तिहां दीक्षा महोत्सव ।
विमल नाण निर्माण, विमल सर्व गुण संस्तक। बलि चढ्यौ विमलगिरि विचरतो, पणि सीधौ समेतगिरि ।
कर जोड़ि समयसुन्दर कहइ, ते विमल नाथ नै तूं समरि॥१३॥ बल भी तेरो अनंत दल भी तेरो अनंत,
पुण्य को फल अनंत साधै पट खंड जु ।
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