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( २० ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि पचवीस सहस करइ यक्ष सेवा, चउदै रत्न नव निधि विस्तार । समयसन्दर कहइ अर तीर्थकर, चक्रवर्ती पण पदवी सार॥१८॥ पूरब भव ना मित्र महीपति, प्रतिबोध्या पूतलि वइराग । स्त्री पणइ तीर्थ वरताव्यौ, स्त्री आगै बैठी लहि लाग ।। निराकार निरंजन स्वामी, उगणीसमौ ए श्री वीतराग । समयसुन्दर कहइ भव मांहें भमतां, मल्लिनाथ मिल्यो मुझ भाग।१६ हरि हर ब्रह्मा देव तणे रे, देहरइ भूला काय भमौ । समकित सूधो धरउ मन मांहे, मिथ्या मारग दूर गमौ।।
आठ करम बंधन थी छूटौ, अरिहंत देव नै प्राय नमौ । समयसुन्दर कहइ श्री मुनिसुव्रत, वांदउ तीर्थंकर वीसमौ ॥२०॥ गुरु मुख शुद्ध क्रिया विधि साचवी, सामायक नै पोसउ करौ। दृढ आसन बैसी मन निश्चल, ध्यान एक अरिहंत धरौ ॥ जरा मरण दुख जल पूरण, भविक जेम संसार तरौ । समयसुन्दर कहै लय लगाड़ि नइ,
नमि नमि नमि नमि मुख उच्चरौ ॥२१॥ वे बब्बीहा भाई अरे काहे री राजुल बाई,
अरी तें कहां देखे नेमि मैं तो विरह न खमाई। विरह कोकिल सहकार विरह गज रेवा होइ,
विरह बब्बीहा मेह विरह सर हंस विधोई ॥ चक्रवाक चकवी विरहा, विरह सहु व्यापी रह्यो । म करि दुख राजुल मुधा कि,समयसुन्दर साचौ कयौ ॥२२॥
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