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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
स्वर्गे च मर्त्यलोके, पाताले ज्योतिषां च जिनभवने। शाश्वतरूपाः प्रतिमाः वन्दे श्रीवीतरागाणाम् ॥११॥ इति जिनेश्वरतीर्थपरम्परा, सकलचंद्र-सुबिम्बमनोहरा । सुरनरादिनुता भुवि विश्रुता, समयसुन्दर सन्मुनिना स्तुता। १६
इति श्रीशत्रुञ्जयादितीर्थबृहत्स्तवनं समाप्तम् *
तीर्थमाला स्तवन सेवजे ऋषभ समोसरथा, भला गुण भरया रे । सीधा साधु अनंत, तीरथ ते नमु रे ॥१॥ तीन कल्याणक जिहां थया, मुगते गया रे। नेमीश्वर गिरनार, , तीरथ ते नमु रे ॥२॥ अष्टापद इक देहरउ, गिरि सेहरउ रे। भरते भराव्या बिंब, तीरथ ते नमुरे॥३॥
आबू चौमुख अति भलो, त्रिभुवन तिलो रे। विमल वसही वस्तुपाल, तीरथ ते नमुरे ॥४॥ समेत शिखर सोहामणो, रलियामणो रे। सीधा तीर्थकर वीस, तीरथ ते नमु रे ॥५॥
*स्वयं शोधित प्रति से । रचनाकाल सं० १६७२ से पूर्व सुनिश्चित है क्योंकि राणकपुर की यात्रा से पूर्व इसकी रचना हुई। सं०१६६६ के पश्चात् की कृति में लिखी मिलने से अनुमानतः इसकी रचना सं० १६६६ पश्चात् हुई होगी।
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