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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
( ७७ )
प्रथम तीर्थकर प्रथम भुवनगुरु,
नाभिराय कुल कमल ससी री । ऋ०।२। अंश ऊपर अलिकावलि अोपत,
कंचन कसक्ट रेख कसी री। श्री विमलाचल मंडन साहित्र,
समयसुन्दर प्रणमत उलसी री । ऋ०।३।
विमलाचल मण्डन आदि जिन स्तवन क्यों न भये हम मोर विमल गिरि, क्यों न भये हम मोर। क्यों न भये हम शीतल पानी, सींचत तस्वर छोर । अहनिश जिनजी के अंग पखालत, तोड़त करम कठोर। वि०१॥ क्यों न भये हम बावन चंदन, और केसर की छोर। क्यों न भये हम मोगरा मालती, रहते जिनजी के मौर। वि०२। क्यों न भये हम मृदंग झालरिया,करत मधुर ध्वनि घोर। जिनजी के आगल नृत्य सुहावत, पावत शिवपुर ठौर । वि०३। जग मंडल साचौ ए जिनजी, और न देखा राचत मोर। समयसुन्दर कहै ये प्रभु सेवो, जन्म जरा नहीं और। वि०४।
श्री आबू तीर्थ स्तवन आबू तीरथ भेटियउ, प्रगव्यउ पुण्य पडूर मेरे लाल । सफल जन्म थयउ माहरउ, दुख दोहग गया दूर मेरे लाल।१।
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