________________
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ( १५ ) श्री चौधीस जिन सवैया
नाभिराय मरुदेवी नंदन, युगलाधर्म निवारण हार । सउ बेटां नै राज सौंपि करि, आप लियौ संयम वृत भार ॥ समौसरया स्वामी सेज गिरि, जिनवर पूर्व निवाणुवार । समयसुन्दर कहै प्रथम तीर्थंकर, आदिनाथ सेवो सुखकार ॥१॥ पंचास कोड़ी लाख सयरोपम, आदिनाथ थकी गया जाम। वंस इखाग मात विजया कुखि, जनम अयोध्या नगरी ठाम ॥ तारंगे मूरति अति सुन्दर, गज लंछन स्वामी अभिराम । समयसुन्दर कहै अजितनाथ नै, यह ऊठो नै करू प्रणाम ॥२॥ सेना मात कूखि मानस सर, राजहंस लीला राजेसर । प्रगट रूप पणि तू परमेसर, अलख रूप पणि तूं अलवेसर।। हय लंछण अति रूप मनोहर, वंश इक्खाग समुद्र शशिहर । समयसुन्दर कहै ते तीर्थंकर, संभवनाथ अनाथ को पीहर ।।३।। सुरगुरु सहस करइ मुखि रसना, तउ पणि कहितां नावइ अंत । गुण गिरणा परमेश्वर केरा, प्रकट रूप त्रिभुवन पसरंत ।। भव समुद्र तारण त्रिभुवन पति, भय भंजण स्वामी भगवंत । समयसुन्दर कहै श्री अभिनंदन, चौथउ तीर्थंकर अरिहंत ॥४॥ शौक बिहुं झगड़ो समझाव्यउ, सुमति दोध माता नै सार । सुमति सहु वांछडू नर नारी, सुमति दो हे मुझ सरजनहार ।।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org