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महोपाध्याय समयसुन्दर
( ६५ )
क्रिया करउ, चेला क्रिया करउ,
क्रिया करउ जिम तुम्ह निस्तरउ । क्रि०।१। पडिलेहउ उपग्रण पातरउ,
जयणा सं काजउ ऊधरउ । क्रि०।२। पडिकमा पाठ सुध उचरउ,
_ सहु अधिकार गमा सांभरउ । क्रि० ।३। काउसग्ग करता मन पांतरउ,
चार प्रांगुल पग नउ आंतरउ । क्रि०।४। परमाद नइ आलस परिहरउ,
तिरिय निगोद पड़ण थी डरउ । क्रि० ।। क्रियावंत दीसइ फूटरउ,
क्रिया उपाय करम छूटरउ । क्रि०।६। पांगलर ज्ञान किस्यउ कामरउ,
ज्ञान सहित क्रिया आदरउ । क्रि०१७ समयसुन्दर द्यइ उपदेश खरउ,
मुगति तण उ मारग पाधरउ । क्रि० ।। ज्ञान क्रिया के सम्बन्ध में आपके उपरोक्त विचार आज भी समाज के लिये मार्ग दर्शक हैं।
वर्णनात्मक दृष्टि से-कवि ने पौराणिक चरित्रों के वर्णन में भी अपने युग की छाप अङ्कित की है, जिससे व्याख्यानादि में बड़ी ही सजीवता और रोचकता आ जाती है। मृगावती चौपाई में चित्रकार का वर्णन करते हुए अपने युग के भित्ति चित्रों का सुन्दर चित्रण किया है। राम, सीता, गणेश, काबुली,
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