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महोपाध्याय समयसुन्दर
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के परचों का चमत्कारी * उल्लेख भी अपनी कृतियों में किया है। श्री जिनचन्द्रसूरि जी के बहुत से गीत, ष्टक आदि मैं ऐतिहा सिक सामग्री के साथ-साथ गुरु-भक्ति भी प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। इसी प्रकार श्री जिनसिंहसूरि, श्री जिनराजसूरि और श्रीजिनसागरसूरि के पद अष्टकादिक भी बनाये हैं । श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टक व अलजा गीत आदि अनेक गीत भावपूर्ण व धारावाही मुक्तकों में बद्ध हैं । श्री जिनसिंहरि के प्रति अगाध भक्ति पूर्ण पंक्तियाँ उदाहरण स्वरूप देखिये:
मुझ मन मोह्यो रे गुरुजी, तुम्ह गुणे जिम बाबीहड़उ मेहो जी । मधुकर मोह्यो रे सुन्दर मालती, चन्द चकोर सनेहो जी । मु.। १ । मान सरोवर मोघो हंसलउ, कोयल जिम सहकारो जी । मयगल मोयो रेजिम रेवा नदी, सतिय मोही भरतारो जी । मु.। २ । गुरु चरणे रंग लागउ माहरउ, जेहवउ चोल मजीठो जी । दूर थकी पिग खिण नवि बीसरइ, वचन अमीरस मीठो जी । मु.। ३ । सकल सोभागी सह गुरु राजियउ, श्री जिनसिंघ सूरीसो जी । समय सुंदर कहइ गुरु गुण गावतां, पूजइ मनह जगीसो जी । मु. । ४ । ( कुसुमाञ्जति पृष्ठ ३८७ )
गुरु दीवउ गुरु चन्द्रमा रे, गुरु देखाड़ गुरु उपगारी गुरु बड़ा रे, गुरु उत्तार
बाट । घाट ॥२॥
( जिनसिंहसूरि गीत )
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उपदेशक की दृष्टि से देखिये, तो पृष्ठ ४२० से ४६३ तक पदेशिक गीत ही गीत मिलेंगे । पृष्ठ २४७ से पृष्ठ ३४३ तक पूर्व * "आयो आयो जी समरंता दादौ आयो ” कुसुमाञ्जलि पृष्ठ ३५०
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