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महोपाध्याय समयसुन्दर
( ७१ )
एकाक्षरी नाममाला, वररुचि एकाक्षरी निघंटु नाममाला जयसुन्दरसूरि कृत एकाक्षरी नाममाला + (?)
और इस प्रकार की अनेकार्थी तो नहीं किंतु द्वयर्थी कृतियें स्तोत्र और गीत रूप में कवि को और भी प्राप्त हैं; जो 'साहित्य-सर्जन' अध्याय में अनेकार्थी - साहित्य की तालिका में उल्लिखित हैं ।
छन्द
"
कवि प्रणीत 'भावशतक' और 'विविधछन्द जातिमय वोतरास्तव' को देखने से स्पष्ट है कि कवि का 'छन्द' साहित्य पर भी पूर्ण अधिकार था । अन्यथा स्तोत्रों में छन्दनाम सह द्वयर्थी रचना करना सामान्य ही नहीं, अपितु अत्यन्त दुष्कर कार्य है । कवि ने जिन जिन छन्दों का प्रयोग किया है उनमें से कतिपय तो साहित्य में अयुक्त ही हैं, हैं तो भी कचित हो । कवि प्रयुक्त छन्द निम्न हैं:
आर्या, गीतिका, पथ्यावक्त्रा, वैतालीय, पुष्पितामा, अनुष्टुब्, उपजाति, इन्द्रवज्रा इन्द्रवंशा, सोमराजी, मधुमती, हंसमाला, चूडामणि, विद्युत्माला, भद्रिका, चम्पकमाला, मत्ताक्रीडा, दोधक, तोटक, मणिनिकर, मृदङ्गक, रथोद्धता, अश्विनी, शालिनी, स्रग्विणी, द्रुतविलम्बित, प्रमाणिका, वसन्ततिलका, मालिनी, हरिणी, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडित,
स्रग्धरा ।
अलङ्कारः - रस
कवि की खण्डकाव्य अथवा महाकाव्य के रूप में रचनायें प्राप्त नहीं हैं, हैं तो भी केवल पादपूर्ति रूप 'जिनसिंहसूरि पद
* अने० पृ० ५४ ।
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