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महोपाध्याय समयसुन्दर
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पूरण चन्द जिसौ मुख तेरो, दंत पंक्ति मचकुंद कली हो । सुन्दर नयन तारिका शोभत, मानु कमल दल मध्य अली हो | २| ( अजितजिन स्तवन ) भक्त कवि के कोमल हृदय का अवलोकन कीजिये:तुम मेँ बिच अन्तरघउ, किम करूँ तोरी सेव । देव न दीधी पांखड़ी, पण दिल में तूं इक देव || २ ||
( सीमन्धर गीत ) विद्या पांख बिना किम वांद, पणि माहरू मन त्यांह रे ॥२॥ ( बाहुजिन गीत ) पणि मुझ नई संभारज्यो, तुम्ह सेती हो घणी जाण पिळाख । तुमे नीरागी निसप्रीही, पणि म्हारइ तो तुमे जीवन प्रोण ॥ ( अजितवीर्य जिन गीतम् )
अहो मेरे जिन कुँ कुणमा कहूं । काष्ठकलप चिन्तामणि पाथर, कामगवी पशु दोष ग्रहुँ । श्र० । १ । चन्द्र कलंकी समुद्र जल खारउ, सूरज ताप न सहूं । जल दाता परिण श्याम वदन घन, मेरु कृपण तउ हुं किम सदहुं |२| कमल कोमल पणि नाल कंटक नित, संख कुटिलता बहु । समय सुंदर कह अनंत तीर्थंकर, तुम मई दोष न लहुँ । आ० | ३ | ( अनन्तजिन गीतम् ) प्रभु-दर्शन से कवि का मन-मयूर नाच उठता है:तुम दरसण हो मुझ प्राणंद पूर कि, जिम जगि चन्द चकोरड़ा ।
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