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महोपाध्याय समयसुन्दर ( ८७ ) तुं जगजीवन प्राण आधारा, तूं मेरा पुत्चा बहुत पियारा । तेथें वंजा घोल ऋषभजी, आउ असाड़ा कोल ।"
[कु० पृ० ११]
"साहिब मइडा चंगी सूरति, आ रथ चढीय आवंदा हे भइणा।
नेमि मइकुं भावंदा हे । भावंदा हे मइकुं भावंदो हे, नेमि असाढ़े भावंदा हे ।। आया तोरण लाल असाड़ा, पसुय देखि पछिताउंदा हे भइणा ।२। ए दुनिया सब खोटो यारों, धरमउ ते दिलु धाउंदा हे भइणा।३। कूडी गल्ल जीवां दई कारणि, जादु कितर्फ जावंदा हे भइणा।४। घोटु असाइइ संयम गिद्धा, सच्चा राह सुणावंदा हे भइणा ।६। ईवै राजुल राणी आखै, संयम मइकु सुहावंदा हे भइणा ७/
[ नेमिस्तव कु० पृ० १३२] इसी प्रकार मृगावती चतुष्पदी तृतीय खण्ड नवमी ढाल, सिन्धी भाषा में ही प्रथित है।
कवि ने सर्व प्रथम राजस्थानी में ही लेखनी उठाई, किन्तु ज्यों ज्यों उसके भ्रमण का क्षेत्र विस्तृत होता गया त्यों-त्यों उसका भाषा-ज्ञान भी विस्तृत होता गया और वह प्राचीन हिन्दी, गुजराती सिन्धी आदि में भी साहित्य के भण्डार को भरता गया। प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती सम्मिश्रित तो प्रस्तुत ग्रन्थ है ही।
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