________________
महोपाध्याय समय सुन्दर
( ७ह )
पटल, शीघ्रबोध और सारंगधर आदि ग्रन्थों के आधार पर कवि ने 'दीक्षा-प्रतिष्ठा शुद्धि' नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना अत्यन्त ही सरल भाषा में की है। साथ ही कल्पसूत्र टीका, गाथा सहस्री आदि ग्रन्थों में कई वर्ण्य-स्थलों पर इस सम्बन्ध का अच्छा विशदविवेचन किया है और वह भी पृथक-पृथक भेदों के साथ | अतः यह स्पष्ट सत्य है कि कवि ज्योतिष शास्त्र के भी विशारद और निष्णात थे ।
टीकाकार के रूप में
काव्य, अलङ्कार, छन्द, आगम, स्तोत्र आदि प्रत्येक साहित्य पर कवि ने टीकाओं की रचना की है। जिसकी सूची हम 'साहित्य-सर्जन' में दे आये हैं; अतः यहां पुनरुक्ति नहीं करेंगे। इन टीका ग्रन्थों को देखने से यह तो निर्विवाद है कि टीकाकार का जिस प्रकार पाण्डित्य, बहुश्रुतज्ञता और योग्यता होनी चाहिये, वह सब कवि में मौजूद है । कवि का ज्ञान-विशद और भाषा प्राञ्जल होते हुये भी आश्चर्य यह है कि कहीं भी 'मूले इन्द्र बिडौजा टीका' उक्ति के अनुसार अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन करता या बघारता हुआ नहीं चलता है। अपितु शिष्यों के हितार्थ तिसरल होते हुये भी वैदग्ध्यपूर्ण प्राञ्जल भाषा में लिखता हुआ नजर आता है । कवि, प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ की अपेक्षा भी मूल काव्यकार के भावों को, अर्थगांभीर्य को सरस रसप्रवाह युक्त प्रकट करने में अधिक सफल हुआ है । कवि की शैली खण्डान्वय है । खण्डान्वय होते हुये भी, अतिप्रचलित प्रत्येक वाक्यों की व्याख्या नहीं करता है। जहां मूल अति सरल होता है वहां कवि सारांश ( भावार्थ ) कह देता है और अन्य वाक्यों की व्याख्या । अप्रचलित विषयों पर विशदता से भी लिखता है जिससे विषय का प्रतिपादन कहीं
Jain Educationa International
-
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org