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महोपाध्याय समयसुन्दर
महोत्सव काव्य' और ऋषभ भक्तामर काव्य । इस काव्य में कवि ने शब्दालङ्कारों के साथ अर्थालङ्कारों में उपमा, रूपक, प्रतीप, वक्रोक्ति, अतिशयोक्ति, अन्योक्ति, स्वभावोक्ति, विभावना, निदर्शन, दृष्टान्त, संदेह और सङ्कर तथा संसृष्टि अलङ्कारों का सन्निवेश रसपरिपाक को दृष्टि से बहुत ही सुन्दर किया है।
स्तोत्र साहित्य में श्लेष और यमकालङ्कारों की प्रधानता कवि की शब्दालङ्कार प्रियता को प्रकट करती है।*
मानन्दवर्धनाचार्य ने काव्यस्यात्मा धनिः' कहकर ध्वनि को काव्य की आत्मा स्वीकार की है। प्राचार्य मम्मट ने अपने काव्यप्रकाश नामक लक्षणप्रन्थ में इसी ध्वनि को आश्रित करके वाच्यातिशायी व्यङ्ग के पूर्णकाव्य को उत्तम काव्य स्वीकार किया है। उसी उत्तम काव्य के कतिपय भेदों पर कवि ने 'भावशतक' में विशदता से विचार किया है और इसके द्वारा ही रस-परिपुष्टि सिद्ध करता हुआ उत्तम काव्य की महत्ता पर विशद प्रकाश डाला है।
./ चित्रकाव्य
साहित्यशास्त्र की दृष्टि से चित्रकाव्य अधम काव्य माना गया है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि चित्रकाव्य की रचना में छन्दशास्त्र, व्याकरण, निर्वचन तथा कोष आदि पर पूर्ण अधिकार होना आवश्यक है। कवि ने भी अपने कतिपय स्तोत्रों में ऐसे ही पाण्डित्य का परिचय दिया है। इन चित्रकाव्यमय स्तोत्रों को भावाभिव्यक्ति या रसनिष्पत्ति की दृष्टि से चाहे उत्कृष्ट काव्य न मानें, किन्तु विचार वैदग्ध्य और रचना-कौशल की दृष्टि से इन स्तोत्रों को उत्कृष्ट काव्य मानना ही होगा। कवि प्रणीत चित्रकाव्यमय स्तोत्र निम्न हैं:* कु.पृ० १८७, १८८, १९२। । भावशतक पद्य २ ।
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