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महोपाध्याय समयसुन्दर
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त्वां नुवे यस्य तं शंकरे मे मते, देवपादाम्बुजेशं करे मे मते । मन्मन(?)चञ्चरीकोपसंतापते, नाभिभूपाङ्गभूः को-पसंतापते।१३।"
[ श्लेषमय आदिनाथस्तोत्र कु० पृ० ६१४] "ततान धर्म जगनाह तार, मदीदह दुःखतती-हतार । अचीकरच्छम सतां जनानां, जहार दीप्तारशितांजनानाम् ।। बेगाद्व्यनीषी दरिकाममाद, श्रियापि नो यो भविकाममादम् । नुत प्रभु ते च नता रराज, शिवे यशः कैरवतारराज ।४।"
[यमकबद्ध पार्श्वस्तोत्र, कु० पृ० १८७] "अमर-सत्कल-सत्कलसत्कलं, सुपदयाऽमलया मलयामलम् । प्रबलसादर-सादरसादरं, शमदमाकर-माकर-माकरम् ।२।"
यमकबद्ध पाश्वस्तोत्र कु० पृ०१९२] एक ही स्वरसंयुक्त पद्य का रसास्वादन करिये:" पदकजनत सदमरशरण, वरकमलवदनवरकरचरण ! । शमदमधर नरदरहरण ! जय जलज-धरपमरकरकरण! ॥११"।
प्राच्य कवि के रचित काव्य के एक चरण को ग्रहण कर तीन नये चरणों का निर्माण-पादपूर्ति कहलाता है । यह कार्य अतिदुष्कर है। क्योंकि इसमें कवि को प्राच्य कवि के भाव, भाषा, शब्दयोजना को अक्षण्ण रखते हुये, अपने भाव और विचारों का सन्निवेश करना होता है। यह कार्य प्रतिभा, पटुता और शब्दयोजना सम्पन्न कवि ही कर सकता है। इसीलिये कहा जाता है कि 'नवीन काव्य का निमोण करना, पादपूर्ति साहित्य की अपेक्षा अत्यन्त सरल है।
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