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महोपाध्याय समयसुन्दर
(ख) महिमासमुद्र के पौत्र, श्रीविद्याविजय के शिष्य वीरपाल द्वारा सं० १६६६ में लिखित जिन चन्द्रसूरि निर्वाण रास एवं आलीजा गीत (अभय जैन प्रन्थालय) प्राप्त हैं । साहित्य-सर्जन
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कविवर सर्वतोमुखी प्रतिभा के धारक एक उद्भट विद्वान् थे । केवल वे साहित्य की चर्चा करने वाले वाचा के विद्वान् ही नहीं थे, अपितु वे थे प्रकाण्ड - पाण्डित्य के साथ लेखनी के धनी भी । कवि ने व्याकरण, अनेकार्थी साहित्य, साहित्य, लक्षण, छन्द, ज्योतिष, पादपूर्ति साहित्य, चार्चिक, सैद्धान्तिक और भाषात्मक गेय साहित्य की जो मौलिक रचनायें और ठीकायें प्रथित कर सरस्वती के भरडार को समृद्ध कर जो भारतीय वाङ्मय की सेवा की है, वह वस्तुत: अनुपमेय है और वर्तमान साधु-समाज के लिये आदर्शभूत अनुकरणीय भी है । कवि की कृतियाँ निम्न हैं । जिनकी तालिका विषय-विभाजन के अनुसार इस प्रकार है:सारस्वत वृत्ति *, सारस्वत रहस्य, लिंगानुशासन श्रवचूर्णि १, अनिकारिका,
व्याकरणः
* कवि, स्वयं लिखित सारस्वतीय शब्दरूपावलि में उल्लेख करता है:
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" सारस्वतस्य रूपाणि, पूर्व वृत्तेरलीलिखत् । स्तम्भतीर्थे मधौ मासे, गणिः समयसुन्दरः ११।"
कवि की यह कृति अभी तक अज्ञात ही है। शोध होनी चाहिये ।
कवि स्वयं लिखित पुल्लिङ्गान्त तक ही चूर्णि है ।
+ प्रति अ० जै० ग्र० में है ।
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