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महोपाध्याय समयसुन्दर
(ख) हर्षकुशल के पौत्र प्राचार्य हर्णसागर द्वारा सं० १७२६
कार्तिक कृष्णा नवमी को लिखित पुण्यसार चतुष्पदी
(सेठिया लायब्रेरी, बीकानेर) प्राप्त है । (ग) हर्षकुशल के द्वितीय पौत्र ज्ञान तिलक रचित ३-४
स्तोत्र और स्वयं लिखित फुटकर संग्रह का एक गुटका (मेरे संग्रह में ) प्राप्त है और ज्ञान तिलक के शिष्य विनयचन्द्र गणि अच्छे कवि थे। इनकी प्रणीत निम्नलिखित कृतियाँ प्राप्त हैं:
(१) उत्तमकुमार चरित्र, र० सं० १७५२ फा० शु०५ पाटण, (२) वीसी, र० सं० १७५४ राजलगढ़, (३) ग्यारह अंग सेजमाय, र०सं०१७५५, (४) शत्रञ्जय स्तव र० सं० १७५५ पो० शु० १०, १५) मदनरेखा रास (?), (६) चौवीसी, (७) रोहक कथा चौपाई
(८) रथनेमि स्वाध्याय, () नेमि राजुल बारहमासा (ब) हर्षकुशल के तृतीय पौत्र पुण्यतिलक प्रणीत 'नरपति
जय चर्या यन्त्रकोद्धार टिप्षनक (जिनहरिसागरसूरि भं० लोहावट ) प्राप्त है। इन्हीं पुण्यतिलक के पौत्र वाचक पुण्यशील द्वारा सं० १८१० में लिखित 'महाराजकुमार चरित्र चतुष्पदी' (चुन्नीजी का संग्रह,
बीकानेर) प्राप्त है। ४. मेघकीर्ति के शिष्य रामचन्द्र प्रणीत एक वीसी प्राप्त है।
भौर सं० १६८२ में लिखित लिंगानुशासन की प्रति भी (उ० जयचन्द्रजी सं० बीकानेर) प्राप्त है। इन्हीं की परम्परा में अमरविमलजी के तृतीय शिष्य पालमचन्दजी एक श्रेष्ठ कवि थे। इनकी निम्न रचनायें प्राप्त हैं:
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