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महोपाध्याय समयसुन्दर
टीका और उत्तराध्ययन टीका की रचना की है। उत्तराध्ययन टीका का प्रथमादर्श भी इन्हीं ने लिखा था। "दयाविजयशिष्यस्य, वाचनाय विरच्यते।"
[ऋ० टी०] "प्रथमादर्शकोऽलेखि, दयाविजय साधुना।"
[उ० टी०] (ग) वाचक जयकीर्ति के शिष्य राजसोम प्रणीत दो ग्रन्थ
प्राप्त हैं:(१) श्रावकाराधना भाषा. सं० १७१५ जे० सु० नोखा
(२) इरियावही मिथ्यादुष्कृत वालावबोध (घ) वाचक जयकीति के पौत्र शिष्य समयनिधान द्वारा सं०
१७३१ अकबराबाद में रचित सुसढ चतुष्पदी प्राप्त है। २. सहजविमल और मेघविजय के पठनार्थ कवि ने रघुवंश
टीका, नव तत्त्व टीका और जयतिहुअण स्त्रोत्र टीका की रचना की थी। (क) सहजविमल के शिष्य हरिराम के निमित्त कवि ने
रघुवंश टोका और वाग्भटालंकार टीका की रचना की है और इसे अपना पौत्र “पाठयता पौत्र हरिराम" [रघु० टी०] बताया है। निश्चिततया नहीं कहा जा सकता कि हरिराम किसका शिष्य था, सहजविमल का या मेषविजय का? और यह भी नहीं कहा जा सकता कि हरिराम यह नाम इसका पूर्वावस्था का था या दीक्षितावस्था का? अथवा दीक्षितावस्था का नाम हर्षकुशल था ? यहां इनका नाम सहजविमल के शिष्य रूप में अनुमानतः ही लिखा गया है।
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