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महोपाध्याय समयमुन्दर
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(१) मौन एकादशी चौपाई, र० सं० १८१४ माघ शु०५ रवि० मकसूदावाद (मेरे संग्रह में), (२) सम्यक्त्व कौमुदी, र० सं० १८२२ मि. सु. ४ मकसूदाबाद (मेरे संग्रह में), (३) जीवविचार स्तव, र० सं० १८१५ वै० शु०५ रवि मकसुदावाद, (४) त्रैलोक्य प्रतिमा स्तव, र० सं० १८१७ प्रा० शु० २।
इन्हीं अमरविलासजी के पौत्र शिष्य, काचक जयरत्न के शिष्य कस्तूरचन्द्र गणि एक प्रौढ़ विद्वानों में से थे। इनकी रची हुई केवल दो ही कृतियां प्राप्त हैं:(१) षड् दर्शन समुच्चय बालावबोध, सं० १८६४ वै०
व०२ शनि, बीकानेर, (इसकी प्रति यति श्री मुकन
चन्द्रजी के संग्रह, बीकानेर में प्राप्त है।) (२) ज्ञातासूत्र दीपिका, जिनहेमसूरि राज्ये, सं० १८६,
प्रारम्भ जयपुर और समाप्ति इन्दोर, पं० १८००० कृति अत्यन्त विद्वतापूर्ण है।
(प्रेस काँपी मेरे संग्रह में) मेधकीर्ति की परम्परा में कीर्तिनिधान के शिष्य कीर्तिसागर लिखित (१) रत्नपरीक्षा ले० सं० १७२२ (चुम्नी जी सं० वी०) और (२) स्याद्वादमंजरी ले० सं० १७२५
मेडता (अभय जैन ग्रन्थालय) प्राप्त हैं। ५. महिमासमुद्र के लिये कवि ने सं० १६६७ उच्चानगर
में श्रावकाराधना की रचना की थी। (क) महिमासमुद्र के शिष्य धर्मसिंह द्वारा सं० १७०८ में
लिखित थावच्चा चतुष्पदी (अभय जैन ग्रन्थालय) प्राप्त है।
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