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महोपाध्याय समयसुन्दर ( ४५ ) सूत्रालापकमुद्रितार्थविवृतौ तत्साक्षिभूता धृताः, प्रायस्ताः कठिनास्तदर्थविवृतौ टीका विना दुर्घटाः ।।
उत्तराध्ययन टीका भी साहित्यिक दृष्टि से काफी महत्व रखती है। इसकी प्रशस्ति में वादी स्वयं अपने को नव्यन्याय और महाभाष्य का विशारद कहता है:
तच्छिष्यमुख्यदक्षण, हर्षनन्दन वादिना ।
चिन्तामणि-महाभाष्य-शास्त्रपारप्रश्वना ।१ इन चारों ही कृतियों की भाषा अत्यन्त प्रौढ एवं प्राञ्जल होते हुये भी सरल-सरस प्रवाह युक्त है। वादी की लेखिनी में समस्कार यह है कि पाठक स्वतः ही आकृष्ट होकर मननशील हो जाता है। (क) वादी हळुनन्दन के शिष्य वाचक जयकीर्ति गणि जैन
साहित्य के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र के भी अच्छे निष्णात थे। कवि 'दीक्षा प्रतिष्ठा शुद्धि' में स्वयं कहता है कि 'यह ज्योतिष शास्त्र का विद्वान है और इसकी
सहायता से इस ग्रन्थ की मैंने रचना की है:"ज्योतिःशास्त्र विचक्षण-वाचक-जयकीर्ति-दत्तसाहाय्यैः" इनकी प्रणीत निम्न रचनायें प्राप्त हैं
(१) पृथ्वीराज वेलि बालावबोध. सं० १६८६ बीकानेर. (२) षडावश्यक बालावबोध, सं० १६६३ (३) जिनराजसूरि रास. (ख) वादी हर्षनन्दन के द्वितीय शिष्य दयाविजय भी अच्छे
विद्वान थे। इन्हीं के पठनार्थ वादीजी ने ऋषिमण्डल
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