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प्रश्नों के उत्तर
अवलोकन किया। भगवान महावीर एवं उनके पूर्व से हुए अन्य सभी तीर्थकरों ने वस्तु के स्वरूप का वर्णन एका दृष्टि से नहीं, प्रत्युत ग्रनेकान्त दृष्टि से किया है। क्योंकि दुनिया मे स्थित प्रत्येक पदार्थ अनन्तगुण युक्त है | अन उसके एक गुण को पकट कर ग्रन्थ गुणी की उपेक्षा करना वस्तु के यथार्थ स्वरूप को नहीं समझता है । उनके वास्तविक स्वरूप का परिज्ञान करने के लिए, प्रत्येक वस्तु मे अन्तर्निहित अनेक गुणो का अवलोकन एवं प्रत्यक्षीकरण करने के लिए अनेकान्त अर्थात् अनेक तरह से समझने की दृष्टि होनी चाहिए ।
श्री भगवती सूत्र ( विवाह - प्रज्ञप्ति सूत्र ) तथा कल्पसूत्र की टीका में वर्णन श्राता है कि भगवान् महावीर ने छदमस्थ अवस्था में ( केवलज्ञान प्राप्त करने के पहले) १० स्वप्न देते* । उन दस स्वप्नों मे भगवान् महावीर ने एक विचित्र पख युक्त कोयन्द का भी एक स्वप्न देखा § । उक्त स्वप्न के फल का वर्णन करते हुए आगम मे बताया गया है कि भगवान् महावीर स्वपर मिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले विचित्र द्वादशाग का उपदेश देंगे । ग्रागम के इन पृष्ठो वा ग्रनु* " समणे भगव महावीरे छउमत्य - कालियाए अतिमराइयनि उमेद महामुवि पानित्ता ण परिबुद्धे ।
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भगवती सूत्र (प बेचग्दान दोसी) १६, उ ६ पृष्ठ १३ $ ''एग चा मह चित्तविचित्तपक्पग पुंनकोकिल - सुविणे पामित्ताणं पदिबुद्धे । ”
- भगवती सूत्र, वही
↑ "जण्ण नमणे भगव महावीरे एग मह चित्तविचित्त- जाव- पडिवुद्धे तण्ण समणे भगव महावीरे विचित्त सममयपरसमइय दुवालमग-गणिपिङग माघवेनि, पन्नवेति परवेति, दमेति, निदसेनि, उवदंमेति । "
- भगवती सूत्र, वही पृष्ठ १८
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