________________ काव्यप्रकाश टीका न्यायसिद्धान्त मंजरी धर्मसंग्रह टिप्पण द्वादशार नयचक्रोद्वार विवरण गुर्जर भाषा में रचनाएं-गुर्जर साहित्य की रचना के विषय में दंतकथा उपाध्याय यशोविजय ने संस्कृत और प्राकृत की अनेक विविध योग्य कृतियों की रचना की। इसी के साथ उन्होंने गुजराती भाषा में भी अनेक कृतियों की रचना की। अनेक लोकभोग्य स्तवन सज्झाय, रास, पूजा, टबा, इत्यादि अनेक उनकी कृतियां हैं। इस विषय में यह दंतकथा प्रचलित है कि यशोविजय काशी से अभ्यास पूरा करके अपने गुरु के साथ विहार करते हुए एक गांव में आए। वहां शाम को प्रतिक्रमण में किसी श्रावक ने नयविजय से विनती की कि आज यशोविजय सज्झाय बोलें। तब यशोविजय ने कहा कि उन्हें कोई सज्झाय कण्ठस्थ नहीं है। यह सुनकर एक श्रावक ने आवेश में उपालम्भ देते हुए कहा कि तीन वर्ष काशी में रहकर क्या घास काटा, तब यशोविजय मौन रहे। उन्होंने विचार किया कि संस्कृत और प्राकृत भाषा सभी लोग तो समझते नहीं हैं, इसलिए लोकभाषा गुजराती में भी रचना करना चाहिए, जिससे अधिक लोग बोध प्राप्त कर सकें। यह निश्चय करके तुरन्त ही उन्होंने समकित के 67 बोल की सज्झाय की रचना की और उसे कण्ठस्थ भी कर ली। दूसरे दिन प्रतिक्रमण में सज्झाय बोलने का आदेश लिया और सज्झाय बोलना शुरू की। सज्झाय बहुत ही लम्बी थी, इसलिए श्रावक अधीर होकर पूछने लगे-अभी और कितनी बाकी है तब यशोविजय ने कहा भाई तीन वर्ष तक घास. काटा। आज पूले बांध रहा हूँ। इतने पूले बांधने में समय तो लगेगा ही। श्रावक बात को समझ गए, और उन्होंने यशोविजय को जो उपालम्भ दिया था, उसके लिए माफी मांगने लगे। यशोविजय की तीक्ष्ण बुद्धि और तेजस्विता का वहां के श्रावकों को भी परिचय हुआ। गुर्जर भाषा में रचनाएँ रास कृतियाँ जम्बूस्वामी का रास द्रव्यगुण पर्याय का रास श्रीपाल रास का उत्तरार्द्ध गुजराती भाषा की महान् कृतियाँ अध्यात्म परीक्षा का टबा आनन्दघन अष्टपदी तत्त्वार्थसूत्र का टबा दिक्पट चौरासी बोल लोकनालि बालाव बोध शठ प्रकरण का बालाव बोध 40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org