________________ 1444 ग्रंथ के प्रणेता आचार्य श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वर महाराज भी इस श्लोक के माध्यम से अनेकान्तवाद की सार्थकता दिखाते हैं पक्षपातो न मे वीरो, न द्वेष कपिलादिषु। युक्तिमद वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः।। महावीर के प्रति मेरा पक्षपात नहीं है और कपिल के प्रति मेरा द्वेष नहीं है। महावीर मेरे मित्र नहीं हैं और कपिल मेरे शत्रु नहीं हैं। जिनका वचन युक्तिसंगत है, वही मुझे मान्य है।" वाचकवर्य उमास्वाति रचित तत्त्वार्थाधिगम के 5वें अध्याय में बताते हैं उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत् तद-भावाव्यमं नित्यम् अर्पिताऽनर्पिता सिद्धैः।।४ उपरोक्त तीन सूत्र भी अनेकान्तवाद की पुष्टि करते हैं। जैनेतर प्राचीन विद्वानों ने भी अनेकान्तवाद का आसरा लिया है, जैसे-ऋग्वेद, कठोपनिषद्, ईशावास्योपनिषद्, भगवद्गीता, ब्रह्मवैवर्तपुराण, विष्णु सहस्रनाम, मनुःस्मृति, महाभारत, महर्षि पतंजलि रचित महाभाष्य, वैयावरण केशरीकैयट, प्रकाण्ड विद्वान् कुमारिल भट्ट, आचार्यश्री वाचस्पतिमिश्र आदि ने भी कहीं-न-कहीं अनेकान्तवाद का आश्रय लिया है। निशीथचूर्णि, आचारांग, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि एवं वृत्ति आदि में भी स्थान-स्थान पर अनेकान्तवाद के दर्शन होते हैं। प्राचीन महापुरुषों का अनेकान्तवाद के प्रति योगदान . श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरि ने सन्मतितर्क, न्यायावतार, द्वात्रिंशद-द्वात्रिंशिका आदि ग्रंथों में अनेकान्तवाद का वर्णन किया है। वाचकवर्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में स्याद्वाद का सुन्दर वर्णन किया है। वादिदेवसूरि महाराज ने स्याद्वाद रत्नाकर ग्रंथ में अनेकान्तवाद का वर्णन किया है। श्री हेमचन्द्रसूरि ने श्री सिद्धहेमशब्दानुशासनम्, प्रमाणमीमांसा, प्रमाणनय, तत्त्वालोकालंकार, अन्योगव्यवच्छेदिका आदि ग्रंथों में स्याद्वाद के बारे में प्रकाश डाला है। मल्लिषेण सूरि महाराज रचित स्याद्वादमंजरी ग्रंथ में अनेकान्तवाद का दर्शन होता है। समन्तभद्राचार्य ने आप्तमीमांसा में अनेकान्त का वर्णन तार्किक दृष्टि से किया है। वादिदेवसूरि महाराज ने प्रमाणनय तत्त्वालोकालंकार पर रचित 84000 श्लोकप्रमाण स्याद्वादरलाकर वृत्ति में अनेकान्तवाद का अनुपम निरूपण किया है। महोपाध्याय यशोविजय ने अनेकान्तव्यवस्था, सप्तभंगीनयप्रदीप, स्याद्वाद रहस्यपत्रम् आदि ग्रंथों में नव्यन्याय की शैली में आबेहूब वर्णन किया है, वो यथार्थ है। अनेकान्तवाद में क्या है? अनेकान्तवाद -सभी दर्शनों का समाधान है। -सम्यग्दृष्टि का समासस्थान है। 284 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org