________________ और असत्यता भी उसी सन्दर्भ विशेष में निहित होती है। किसी भी कथन की सत्यता और असत्यता उस सन्दर्भ से बाहर नहीं देखी जा सकती, जिसमें कि वह कहा गया है। अतः सत्यता या असत्यता का विचार किसी सन्दर्भ विशेष में सत्यता या असत्यता का विचार है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यदि हमारी भाषा सापेक्ष है और उसकी सत्यता किसी दृष्टि विशेष, अपेक्षा विशेष या सन्दर्भ विशेष में निर्भर करती है तो हमें कथन की कोई ऐसी पद्धति खोजनी होगी जो अपनी बात को कहकर भी अपने विरोधी कथनों की सत्यता की सम्भावना का निषेध न करे। जैन आचार्यों ने इस प्रकार की कथन-पद्धति का विकास किया है और उसे स्याद्वाद एवं सप्तभंगी के नाम से विवेचित किया है। स्याद्वाद और सप्तभंगी क्या है? इस सन्दर्भ में तो यहाँ कोई विस्तृत चर्चा नहीं करना चाहते, किन्तु मैं इतना अवश्य ही कहना चाहूँगा कि हमारा कथन सत्य रहे और हमारे वचन-व्यवहार से श्रोता को कोई भ्रान्ति न हो, इसलिए कथन-पद्धति में हमें अपने विधि-निषेधों को सापेक्ष रूप से नहीं रखना चाहिए। यह सापेक्षिक कथन पद्धति ही स्याद्वाद है। जैन आचार्यों ने स्यात् को सत्य का चिह्नइसीलिए कहा है कि अपेक्षापूर्वक कथन करके जहाँ एक ओर वह हमारे कथन को अविरोधी और सत्य बना देता है, वहीं दूसरी ओर श्रोता को कोई भ्रान्ति नहीं होने देता। भगवान महावीर ने इसीलिए अपने भिक्षुओं को स्पष्ट निर्देश दिया था कि वे ऐसी भाषा का प्रयोग करे, जो विभज्यवादी हो। विभज्यवाद भाषायी अभिव्यक्तियों की वह प्रणाली है, जो प्रश्नों को विभाजित करके उत्तर देती है। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध दोनों ने ही इसी बात पर सर्वाधिक बल दिया था कि हमें अपनी भाषा को स्पष्ट बनाना चाहिए। विभज्यवाद के सन्दर्भ में पूर्व में कहा जा चुका है। विभज्यवाद कथन की वह प्रणाली है जो किसी प्रश्न के सन्दर्भ में ऐकान्तिक निर्णय नहीं देकर प्रश्न का सम्यक् विश्लेषण करती है। . जब बुद्ध से यह पूछा गया कि गृहस्थ आराधक होता है या प्रव्रजित? तो उन्होंने कहा कि यदि गृहस्थ और प्रव्रजित दोनों ही मिथ्यावादी हैं तो वे आराधक नहीं हैं। यदि वे मिथ्यावादी नहीं हैं तो आराधक हो सकते हैं। इसी प्रकार जब जयन्ती ने महावीर से पूछा कि सोना अच्छा है या जागना?137 तो उन्होंने कहा-कुछ जीवों का सोना अच्छा है, कुछ का जागना। पापी का सोना अच्छा है और धर्मी को जागना। उपर्युक्त उदाहरणों से यह बात स्पष्ट होती है कि वक्ता को उसके प्रश्न का विश्लेषण पूर्वक उत्तर देना ही विभज्यवाद है। प्रश्न के उत्तरों की यह विश्लेषणात्मक शैली विचारों को सुलझाने वाली तथा सत्य के अनेक आयामों को स्पष्ट करने वाली है। - आधुनिक भाषा-विश्लेषणवाद किसी सीमा तक कथन को विश्लेषित करने वाली इस पद्धति को स्वीकार करके चलता है। भाषा-विश्लेषणात्मक का मूलभूत उद्देश्य कथन के उन अन्तिम घटकों के अर्थ स्पष्ट करना है, जिन्हें उन्होंने तार्किक अण्ड (Logical Atom) कहा है। किसी कथन के वास्तविक प्रतिपाद्य का पता लगाने के लिए यह पद्धति उस कथन को विश्लेषित करके यह स्पष्ट करती है कि उस कथन का वास्तविक तात्पर्य क्या है? यह सत्य है कि भाषा-विश्लेषणवाद एक विकसित दर्शन के रूप में हमारे सामने आया है किन्तु इसके मूल बीज बुद्ध और महावीर के विभज्यवाद दर्शन के आचार्यों ने भाषा-दर्शन के विविध आयाम प्रस्तुत किये हैं, वे अभी गम्भीर विवेचन की अपेक्षा रखते हैं। शब्द के वाच्यार्थ के प्रश्न को लेकर भारतीय दार्शनिकों ने जितनी गम्भीरता से चिंतन किया है, वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और कोई भी भाषा-दर्शन उसकी उपेक्षा करके आगे नहीं बढ़ सकता है। आज 453 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org