Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 652
________________ उपसंहार उपाध्याय यशोविजय का व्यक्तित्व अनेक विशेषताओं से विशिष्ट एवं विख्यात है तो उनका कर्तृत्व कोविदता और कर्मठता से आलोकित है। उनकी कृतियों में उनकी कुशाग्र बुद्धि एवं हृदय स्पर्श दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि उनका भौतिक देह कालक्रम से विलीन हो गया परन्तु उनकी कृतियां उनकी विद्यमानता की परिचायिका हैं। उपाध्यायजी आध्यात्मिक जगत् में एक ऐसे पावन प्रकाश स्तम्भ थे, जिनकी दिव्य ज्योति से जन-जन का मन सदा आलोकित एवं अध्यात्म की दिशा में अनुप्रेरित रहा, जिनकी वाणी में वह अमृत निर्जर प्रवाहित होता था, जिससे श्रद्धा संपृक्त उपासक-उपासिकाओं को धर्माराधना में सदा संबल प्राप्त होता रहा। जिनकी प्रगाढ़ विद्वत्ता, सहज सौम्यता, सहृदयता एवं सरलता दिव्य छटा और विलक्षणता लिये हुए थे। वे एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिनका धन आज भी उनके कृतित्व से सुलभ हो रहा है। उनका व्यक्तित्व वाङ्मय की वसुधा पर वन्दनीय बना है। शौर्यशील की जन्मभूमि गुजरात की वसुंधरा है। उपाध्याय यशोविजय जैसे उत्कृष्ट नर की माता बनने का सौभाग्य गुजरात की भूमि को मिला है। उसमें कनोडु गांव को जन्मभूमि का गौरव देकर उपाध्याय यशोविजय ने शाश्वत यश को अमर बनाया है। - मृत्यु के बाद भी सदिओं तक अपने कार्यों एवं कृतियों द्वारा अमर होने वाली विरल विभूतियों की प्रथम पंक्ति में उपाध्याय यशोविजय का नाम मुखर है, वह निश्चित है। तीन सौ वर्ष पूर्व हुए वे पुण्य, दिव्यमूर्ति जिनशासन मंजूषा का एक अनमोल रत्न है। विक्रम की 17वीं सदी में जन्म धारण करने वाले जैन धर्म के चरम प्रभावक, जैन दर्शन के महान् दार्शनिक, जैन तर्क के महान् तार्किक, षड्दर्शनवेत्ता एवं गुजरात के महान् ज्योतिर्धर, श्रीमद् यशोविजय महाराज, जो एक जैन मुनिवर थे। योग्य उचित समय पर अहमदाबाद जैन संघ समर्पित करते हुए उपाध्याय पद के विरुद से वे उपाध्याय बने थे। सामान्यतः व्यक्ति को विशेष नाम से ही पहचाना जाता है, फिर भी उनके लिए एक आश्चर्य की बात थी कि वो जैन संघ में विशेष्य से नहीं बल्कि विशेषण द्वारा पहचाने जाते थे। ये तो उपाध्यायजी का वचन है कि ऐसे उपाध्यायजी से श्रीमद् यशोविजय का ग्रहण होता था। विशेष्य भी विशेषण का पर्यायवाची बन गया था। ऐसी घटनाएँ विरल विभूतियों के लिए ही घटती हैं। उनके लिए यह बात बहुत ही गौरवास्पद थी। उपाध्यायजी के वचनों के लिए भी एक और विशिष्टता देखने को मिलती है। उनकी वाणी, वचन एवं विचार ऐसे विशेषण से पहचाने जाते हैं और उनकी शाख यानी आगमशाख अर्थात् शास्त्रवचन, ऐसे भी प्रसिद्ध हैं। वर्तमान के एक विद्वान आचार्य ने उनको वर्तमान के महावीर ऐसे नाम से भी उल्लेख किया है। __ आज भी श्रीसंघ में किसी भी बात का विवाद जन्मे तब उपाध्यायजी रचित शास्त्र के टीका को ही अन्तिम प्रमाण माना जाता है। उपाध्यायजी का न्याय यानी सर्वज्ञ का न्याय, इसलिए ही उनके - 567 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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