________________ रहस्यमय परम तत्त्व का अनुभव करने के लिए विशेष दृष्टि अर्थात् अन्तर्दृष्टि या प्रातिभज्ञान चाहिए। रहस्यदृष्टि, रहस्यवाद वास्तव में एक विशेष प्रकार की अनुभूति है, जिसकी प्राप्ति के बाद और कुछ पाना शेष नहीं रह जाता। रहस्य शब्द की व्युत्पत्ति 'रहस्य' और 'वाद' दोनों संस्कृत शब्द हैं। अतः यहां 'रहस्य' शब्द की व्युत्पत्ति एवं उसके विविध अर्थों पर विचार करना अपेक्षित है। 'रहस्य' शब्द 'रह त्यागे' धातु से निष्पन्न है। त्यागार्थक 'रह' धातु में असुन प्रत्यय जोड़ने पर रह+असुन् 'रहस्' शब्द बनता है।' 'दिगादिभ्यो यत्' सूत्रानुसार यत् प्रत्यय लगाने पर रहस्य शब्द निष्पन्न होता है। इस प्रकार रहस्य शब्द की 'रहस्यते अनेन इति रहः', 'रहसि भवं रहस्यम्', 'रहो भवं रहस्यम्' इत्यादि व्युत्पत्तियां की जा सकती हैं। ____ अभिधान राजेन्द्रकोश के अनुसार रहस्य शब्द की व्युत्पत्ति 'रहः एकान्त स्तत्र भवं रहस्यम्' है तथा रहस्य शब्द का अर्थ एकान्त किया है।' रहस्य शब्द के विभिन्न अर्थ सामान्यतयः रहस् शब्द का अर्थ एकान्त है। एकान्त में जो होता है, उसे रहस्य कहा जाता है। पाइअ-लच्छी नाम-माला कोश में 'गुज्झे रहस्स' गुह्य अर्थ में रहस्य शब्द का प्रयोग हुआ है। इसी तरह अभिधानचिन्तामणि में भी गुह्य अर्थ में रहस्य शब्द व्यवहृत हुआ है। पाइअ-सद्-महण्णव में रहस्य शब्द के अनेक अर्थ किये गए हैं, यथा-गुह्य, गोपनीय, एकान्त में उत्पन्न, तत्त्व, भावार्थ, अपवाद स्थान आदि।" धवला में अन्तराय कर्म को रहस्य कहा गया है। अन्तराय कर्म का अविशिष्ट नाश तीन घातिय कर्मों के नाश का अविनाभावी परिणाम है और अन्तराय कर्म का नाश होने पर अघातीय कर्म दग्ध बीज के समान शक्ति रहित हो जाते हैं।" जैनेतर कोशों में भी 'रहस्य' शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ पाए जाते हैं। अमरकोश में रहस् का अर्थ विवक्त, विजन, छत्र, निःशलाक, रह, रपांशु और एकान्त किया गया है।" मेदिनीकोश में रहस शब्द की दृष्टि से उसका अर्थ 'रहस्तत्वे रमे गुह्ये' जैसे प्रमाणों के आधार पर तत्त्व अथवा सार पदार्थ है।" रहस्य शब्द भेद, मर्म या सारतत्त्व के पर्यायवाची के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न कोशों में रहस्य शब्द में विभिन्न अर्थ होने पर भी सब अर्थों के अतिरिक्त रहस्य शब्द खेल, विनोद, मजाक, मश्करी,' मैत्री, स्नेह, प्रेम एवं पारस्परिक सदभाव जैसे अन्य कार्यों में भी व्यवहृत हुआ है। विभिन्न धर्मग्रंथों में रहस्य का अर्थ विभिन्न धर्मग्रंथों में भी रहस्य का प्रत्यय उपलब्ध होता है। ऋग्वेद में 'रहसरि वागः' के रहस शब्द का प्रयोग गुह्य अर्थ में हुआ प्रतीत होता है। वस्तुतः गुह्य और रहस्य शब्द समानार्थक हैं। उपनिषद् शब्द भी रहस्यात्मक का परिवाचक है, जिसका अर्थ है-'रहस्यमय पूजा पद्धति'।" 479 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org