Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ सांख्य मत-सांख्य मत में तीन प्रमाण ही मान्य हैं मानत्रितयं चात्र प्रत्यक्ष लौङ्गिक शाब्दम्। सांख्यमत में प्रत्यक्ष, अनुमान तथा आगम ये तीन प्रमाण हैं। प्रमाण-अर्थोपलब्धि में जो साधकतम कारण होता है, उसे प्रमाण कहते हैं। प्रत्यक्ष-निर्विकल्प श्रोत्रादि वृत्ति को प्रत्यक्ष कहते हैं। प्रत्येक विषय में प्रति इन्द्रिय के अध्यवसाय व्यापार को दृष्ट प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं। अनुमान-अनुमान के तीन प्रकार नैयायिक की तरह सांख्य भी मानते हैं-पूर्ववत, शेषवत एवं सामान्यतोदृष्टि। आगम-आप्त और वेदों के वचन शब्द प्रमाण हैं। राग-द्वेष आदि से रहित वीतराग ब्रह्म सनत्कुमार आदि आज नहीं हैं और श्रुति अर्थात् वेद इन्हीं के वचन आगम शब्द हैं। वैशेषिक मत-वैशेषिक मत में दो ही प्रमाण हैं प्रमाणं च द्विधामीषां प्रत्यक्षं लौङ्गिक तथा। वैशेषिकमतस्येष संक्षेप परिकीर्तितः।।" वैशेषिक दर्शन प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रमाण मानते हैं। प्रत्यक्ष प्रमाण दो प्रकार का है-इन्द्रियज प्रत्यक्ष और योगज प्रत्यक्ष। इन्द्रिय प्रत्यक्ष-श्रोत्रादि पांच इन्द्रियों और मन के सन्निकर्ष से होने वाला इन्द्रिय प्रत्यक्ष है। इन्द्रिय.. प्रत्यक्ष भी दो प्रकार का है-निर्विकल्पक और सविकल्पक। योगज प्रत्यक्ष-योगज प्रत्यक्ष भी दो प्रकार का है-1. युक्त यागियों का और 2. वियुक्त योगियों का। युक्त योगि-समाधि में अत्यन्त तल्लीन एकाग्रध्यानी योगियों द्वारा रचित योग में उत्पन्न होने वाले विशिष्ट धर्म के कारण शरीर से बाहर निकलकर अतीन्द्रिय पदार्थों से संयुक्त होता है। इस संयोग से जो उन युक्त ध्यान मग्न योगियों को अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान होता है, उसे युक्तयोगि प्रत्यक्ष कहते हैं। वियुक्त योगि-जो योगी समाधि जगाये बिना ही चिरकालीन तीव्र योगाभ्यास के कारण सहज ही अतीन्द्रिय पदार्थों को देखते हैं, जानते हैं, वे वियुक्त कहलाते हैं। अनुमान-लिंग को देखकर जो अव्यभिचारी निर्दोष ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे अनुमति कहते हैं। यह अनुमति जिस परामर्श व्याप्ति विशिष्ट पक्ष धर्मता आदि कारक समुदाय से उत्पन्न होती है, उस अनुमति करण को लौंगिक अनुमान कहते हैं। यह अनुमान कार्य-कारण आदि अनेक प्रकार का होता है। मीमांसक मत प्रमाण प्रमाण अर्थात् नहीं जाने गये अनगिनत पदार्थ को जानने वाला ज्ञान प्रमाण है। जैमिनी मत के छः प्रमाण स्वीकारे गये हैं। वे इस प्रकार हैं प्रत्यक्षमनुमानं च शब्दं चोपमया सह। अर्थापतिरभावश्च सह प्रमाणानि जैमिने।। 545 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org