________________ उपाध्याय यशोविजय को विशाल साहित्य का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ था। इनके पास केवल साहित्यिक उत्तराधिकार ही था, ऐसा भी नहीं है। उनके योग-विषयक विविध आचार और प्रतिपादन के ऊपर से ऐसा निःशंक प्रतीत होता है कि वे योगमार्ग के अनुभवी भी थे। इसी से उन्होंने अपने अनुभव तथा साहित्यिक विरासत के बल पर योग विषय से सम्बद्ध ऐसी कृतियों की रचना की है, जो योग परम्परा विषयक आज के ज्ञान-साहित्य में अपनी अनोखी विशेषता रखती है। योग की व्युत्पत्ति आगम शास्त्रों में भी योग शब्द की व्युत्पत्ति मिलती है। 'योजनं योगः' यूज धातु से योग शब्द की निष्पत्ति होती है। युज् धातु को व्याकरण का धञ् प्रत्यय लगने पर योग शब्द बनता है, जिसका अर्थ जोड़ना, संयुक्त करना स्वीकारा गया है। वैसे युज् धातु के अन्य भी अर्थ होते हैं। * योग शब्द युज् धातु से बना है। संस्कृत व्याकरण में दो युज् धातुओं का उल्लेख है, जिनमें एक का अर्थ जोड़ना या संयोजित करना308 तथा दूसरे का अर्थ समाधि, मनःस्थिरता है।509 अर्थात सामान्य रीति से योग का अर्थ सम्बन्ध करना तथा स्थिरता करना है। इस प्रकार लक्ष्य तथा साधन के रूप में दोनों ही योग हैं। इस शब्द का उपयोग भारतीय दर्शनों में दोनों अर्थों में हुआ है। योग शब्द युज समाधौ धातु से बनता है। इसका अर्थ है-समाधि। युजिर योगे धातु से भी योग शब्द बनता है। इसका अर्थ है-जुड़ना। जैन परम्परा में योग शब्द का अर्थ जोड़ने के अर्थ रूप में स्वीकार किया गया है। जैसा कि हरिभद्र सूरि की योगविंशिका में-मोकरवेण जोयणाओ जोगोगा तथा उपाध्याय यशोविजय की मोक्षेण योजनादेव योगो हयत्र निरुध्यते से स्पष्ट है। जैन परम्परा के अनुसार जिन-जिन साधनों से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का योग होता है, उन सब साधनों को योग कह सकते हैं। .. योग शब्द के समानार्थक संवर, ध्यान, तप आदि आगमों में मिलते हैं। आगमों में ध्यान के भेद-प्रभेद तथा आचार-संहिता आदि का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। आगमों में योग से संबंधित विषयों का विशद् वर्णन नियुक्ति में मिलता है।" योग की परिभाषा - योग विद्या एक ऐसी विद्या है, जिसको प्रायः सभी दर्शनों ने, सभी धर्मों ने स्वीकारी है। यह एक ऐसी आध्यात्मिक साधना है, जिसको कोई भी व्यक्ति जात-पात, वर्णन के भेदभाव बिना मान्य करता है, क्योंकि भारतीय संस्कृति के जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष है। अतः मोक्षमार्ग या मुक्ति प्राप्त करने के लिए अनिवार्य एवं आवश्यक साधन योग है। जैसे चिकित्सा शास्त्र में चतुर्वृह के रूप में-1. रोग, 2. रोग का कारण, 3. आरोग्य, 4. आरोग्य का कारण-निमित्त वर्णित है, वैसे ही योगशास्त्र के भी चतुर्युह का उल्लेख है-1. संसार, 2. संसार का कारण, 3. मोक्ष, 4. मोक्ष का साधन। 15 चिकित्सा शास्त्र के समान ही योग भी आध्यात्मिक साधना के लिए चारों बातों को स्वीकार करता है 1. आध्यात्मिक दुःख, 2. उसका कारण (अज्ञान) 369 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org