________________ अनंतकाय से मिश्रित प्रत्येक काय के समूह में 'यह प्रत्येक काय है'-ऐसी भाषा प्रत्येक मिश्रित है, ऐसा उपाध्यायजी ने कहा है।108 टीकाकारों ने यहाँ अनन्त मिश्रित की व्याख्या अनन्तकायिक वनस्पति के सन्दर्भ को लेकर की है किन्तु मेरी दृष्टि से अनन्त मिश्रित और सीमित मिश्रित का तात्पर्य वनस्पतिकायिक जीवों से न होकर संख्या संबंधी कथनों से ही है। भाषायी प्रयोग में हम अनेक बार असीम और ससीम का अनिश्चित अर्थ में प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए हम कहते हैं कि समुद्र की जलराशि अनन्त है, उसकी प्रज्ञा का कोई अन्त नहीं आदि। यद्यपि उपर्युक्त दोनों कथनों में न समुद्र की जलराशि अनन्त है और न प्रज्ञा की। वस्तुतः वे सीमित हैं किन्तु भाषायी प्रयोग में उन्हें असीम या अनन्त कह दिया जाता है। यद्यपि यहाँ वक्ता का प्रयोजन मात्र उसकी विशालता को बताना है। इसी प्रकार कभी-कभी अल्पता को बताने के लिए निषेधात्मक भाषा का प्रयोग कर दिया जाता है, जैसे-आज उसने कुछ नहीं खाया। यहाँ कुछ नहीं खाया का तात्पर्य पूर्णत निषेधात्मक नहीं है। अतः भाषायी प्रयोगों में ससीम को असीम और न कुछ कहकर अभिव्यक्त करने की जो प्रवृत्तियाँ हैं, वे एकान्त यप में सत्य या असत्य नहीं कही जा सकती हैं, इसलिए मिश्र भाषा की कोटि में आती हैं। 9-10. कालमिश्रित और अकाल मिश्रित-उपाध्याय यशोविजय ने कहा है-प्रयोजनवश दिन और रात का विपर्यास जिस भाषा में हो, वह काल मिश्रित सत्यामृषा भाषा है।100 रात या दिन का कुछ भाग अन्य भाग से जहाँ मिश्रित हो जाता है, यह भाषा अकाल मिश्रित सत्यामृषा भाषा कही जाती है।110 काल और अकाल मिश्रित कथनों के उदाहरण निम्न हो सकते हैं-जैसे सवेरा होने के पहले ही किसी व्यक्ति को जगाने के लिए कहा जाये कि “भाई उठो! दिन निकल आया है।" अथवा किसी को जल्दी की स्थिति में 10 या 11 बजे भी यह कह देता है कि "अरे! दोपहर हो गई।" वस्तुतः उपर्युक्त सभी कथन व्यावहारिक भाषा में प्रचलित होते हैं, किन्तु उनकी सत्यता और असत्यता का एकान्त रूप से निर्धारण नहीं होता है। अतः उसे मिश्रभाषा कहा जाता है। जब कथनों को निश्चित रूप से सत्य या असत्य की कोटि में रखना सम्भव नहीं होता है तो उन्हें सत्यमृषा कहा जाता है। 4. असत्यअमृषा कथन-उक्त भेद को परिभाषित करते हुए उपाध्याय यशोविजय ने कहा है अणहिणया जा तीसुवि, ण य आराहणविराहणुवउता। भासा असच्चमोसा एसा भणिया दुवालसहा।।91।। आमंतणि आणवणी जायणी तह पुच्छणीय पन्नवणी। पच्चरखाणी भासां भासां इच्छाणुलोभाय।।70।। अणभिग्गहिआ भासा, भासा य अभिग्गहम्मि बोधच्चा। संसयकरणी भासा, वायड अव्वायहा चेव।।1।।। अर्थात् जो सत्यादि तीन भाषा में अनधिकृत हो और जो आराधक और विराधक भी न हो, वह भाषा सत्यामृषा है, जिसके 12 भेद हैं-1. आमंत्रणी भाषा, 2. आज्ञापनी भाषा, 3. याचनी भाषा, 4. पृच्छनी भाषा, 5. प्रज्ञापनी भाषा, 6. प्रत्याख्यानी भाषा, 7. इच्छानुलोमा भाषा, 8. अनभिगृहीत भाषा, 9. अभिगृहीत भाषा, 10. संशयकरणी भाषा, 11. व्याकृत भाषा, 12. अव्याकृत भाषा। 446 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org