________________ मिथ्यात्व मिथ्यात्व का अपर नाम मिथ्यादर्शन है। विपरीत श्रद्धा को मिथ्यात्व कहते हैं। जैसे अधर्म को धर्म, कुमार्ग को सन्मार्ग, जीव को अजीव, अजीव को जीव, आदि रूप में समझना। दूसरे शब्दों में जिनकथित सुदेव, सुगुरु, सुधर्म को छोड़कर अन्य तत्त्व को मान्य करना या सत्य तत्त्व की अरुचि एवं असत्य तत्त्व की रुचि रखना। मिथ्यात्व दो प्रकार का है-अभिगृहीत और अनभिगृहीत। मिथ्यात्व कर्मबंधन का मूल कारण है। जैसे वस्त्र यानी कपड़े की उत्पत्ति में तन्तु धागा कारण है, वैसे ही कर्म की उत्पत्ति में मिथ्यात्व कारणभूत है। मिथ्यात्व की उपस्थिति में कर्म की अधिक प्रकृतियां बनती हैं। अविरति अविरति अर्थात् अत्यागभाव। हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह आदि पाप, भोग, उपभोग आदि वस्तुओं तथा सावध कर्मों से विरत न होना अर्थात् प्रत्याख्यान पूर्वक त्याग न करना अर्थात् अविरति में रहने के कारण आत्मा कर्म-बंध करता है, वह कर्मबंध का दूसरा हेतु है। कषाय जिससे संसार की वृद्धि हो, जो आत्मा के विशुद्ध स्वरूप को कलुषित बनाये, समभाव की मर्यादा को तोड़े, उसे कषाय कहते हैं। कषाय सबसे अधिक कर्मबंधन में कारण है। तत्त्वार्थ में उमास्वाति ने बताया है-“सकषायत्वात् जीवः कर्मणो योग्यान पुद्गलानास्ते" कषायादि से युक्त जब जीव होता है तब कर्म योग्य पुद्गलों को जीव खींचता है, ग्रहण करता है। कषाय भाव में जीव कर्म से लिप्त होता है। अतः उसे कर्मबंध का कारण माना है। वाचक उमास्वाति ने इस सूत्र में अन्य चार हेतुओं को गौण मानकर कषाय को ही कर्मबंध का मुख्य हेतु माना है। योग मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को योग कहते हैं। मन, वचन और काया से कृत, कारित और अनुमतिरूप प्रवृत्ति योग है। जीवात्मा की प्रत्येक प्रवृत्ति इन तीन योगों की सहायता से ही होती है। अतः योग भी कर्मबंध का कारण है। प्रमाद ___ कुशल में अनादर का भाव प्रमाद है। यह प्रमाद अनेक प्रकार का है। क्षमादि दस धर्मों में अनुत्साह या अनादर का भाव प्रमाद है। चार कषाय आदि इसके परिणाम हैं। मोक्षमार्ग की उपासना में शिथिलता लाना और इन्द्रियादिक विषयों में आसक्त बनना-यह प्रमाद है। विकथा आदि में रस लाना, आलस, आंतरिक अनुत्साह-उनमें अनादर करना प्रमाद है। मन, वचन, कायादि योगों का दुष्प्रणिधान, आर्तध्यान की प्रवृत्ति प्रमाद भाव है।” प्रमाद के पाँच प्रकार हैं। मजं विषय कषाया निहा विकहा य पंज्जमा भणिया। ए ए पग्च पमाया जीवा पांडति संसारे।। मद, विषय, कषाय, निंद्रा और विकथा-ये पाँच प्रकार के प्रमाद बताये गए हैं। जो जीवों को संसार में गिराते हैं, पतन के कारणभूत प्रमाद भी कर्मबंध का हेतु है। 330 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org