________________ होने से उन्हें नोकर्म भी कहते हैं। आठ कर्मों का लक्षण, प्रभेद एवं कर्मबंध का कारण से स्पष्ट किया जाता है। 1. ज्ञानावरण कर्म पदार्थ को जानना ज्ञान है। जो कर्म आत्मा की ज्ञानशक्ति को आवृत्त करे, उसे ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं। अभिधान राजेन्द्रकोश के अनुसार ज्ञानावरण अर्थात् पदार्थ के स्वरूप के विशेष बोध की प्राप्ति में मत्यादि-पाँचों ज्ञान को अपने प्रभाव से आच्छादित करने वाला आवरण। जिस प्रकार बादल सूर्य के प्रकाश को ढंक देते हैं, उसी प्रकार जो कर्मवर्गणाएँ आत्मा की ज्ञान शक्ति को ढंक देती हैं और ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनती हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म कही जाती हैं। आत्मा के ज्ञान गुण को आच्छादित करने वाला कर्म ज्ञानावरण कहलाता है। ज्ञान अर्थात् विशेष रूप से वस्तु का बोध होना, जिससे मतिज्ञान आदि आते हैं सामान्य विशेषात्मके वस्तुनि विशेष ग्रहणात्मको बोध इत्यर्थ / आद्य ज्ञानावरण ज्ञायते अर्थो विशेषरूप तथाऽतेनेति ज्ञानं मतिज्ञानादि / * ज्ञानमाप्रियते येन कर्मणा करणेऽनीयदि ज्ञानावरणीयं विशेषावधारणामित्यर्थ / ज्ञानस्य आवरणं ज्ञानावरणं ज्ञानं मतिज्ञानादि। जो आवृत्त करता है वह आवरण। इसमें जो कर्म ज्ञान का आवरण। इसमें जो कर्म ज्ञान का आवरण करता है, वह ज्ञानावरण। ज्ञानावरण कर्म का आवरण जितना प्रगाढ़ होगा, इतना ही जीव की ज्ञान चेतना का विकास अल्प होगा और आवरण जितना अल्प होगा, उतना विकास अधिक होगा। उपाध्याय यशोविजय ने कम्मपयडी की टीका में ज्ञानावरणीय को व्याख्यायित करते हुए कहा है.. सामान्य विशेषात्मकं वस्तुनि विशेषग्रहणात्मको बोधो ज्ञानं, तदावियते आच्छाद्यतेऽतेनेति ज्ञानावरण। ज्ञानावरण के उत्तर-भेद जीव जिस शक्ति के द्वारा संसार के समस्त पदार्थों का बोध करता है, वह ज्ञान कहलाता है। आत्मा की इस शक्ति को आवृत्त करने वाला कर्म ज्ञानावरण कहलाता है। इसके पाँच भेद हैं। उपाध्याय यशोविजय ने कम्मपयडी की टीका में ज्ञानावरणीय कर्म के पांच भेद बताये हैं मतिश्रुताधिमनः पर्याय केवल ज्ञानावरण भेदात् पश्चं ज्ञानावरणोत्तर प्रकृतयः।” ____ 1. मतिज्ञानावरणीय, 2. श्रुतज्ञानावरणीय, 3. अवधिज्ञानावरणीय, 4. मनःपर्यवज्ञानावरणीय, 5. केवलज्ञानावरणीय। ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के कारण88 जिन कारणों से ज्ञानावरणीय कर्म के परमाणु आत्मा से संयोजित होकर ज्ञान-शक्ति को कुण्ठित करते हैं, ये निम्न छः प्रकार के हैं 1. ज्ञान प्रत्यनीकता-ज्ञान का ज्ञानी से प्रतिकूलता रखना। 2. ज्ञान निन्हय-ज्ञान तथा ज्ञानदाता का अपलाप करना अर्थात् ज्ञानी को कहना कि ज्ञानी नहीं है। 3. ज्ञानान्तराय-ज्ञान को प्राप्त करने में अन्तराय डालना। 4. ज्ञान-प्रद्वेष-ज्ञान या ज्ञानी से द्वेष रखना। 337 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org