Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ "है अपितु विज्ञान के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिए भी बहुत ही ज्ञातव्य होने के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक अवधारणाओं के साथ तुलनीय है। पुद्गल द्रव्य की परिभाषा पुद्गल शब्द जैन दर्शन का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है। वह केवल पारिभाषिक ही नहीं अपितु व्युत्पत्तिमूलक भी है, जो अक्षर, पद तथा धातु आदि के संयोग से बनता है। शाब्दिक रूप से संयोजनवियोजन, संघटन-विघटन, विखंडन संलग्न की क्रियाओं से रूपान्तरित होने वाला द्रव्य पुद्गल है। पुद्गल की व्याख्या हमें अनेक ग्रंथों में मिलती है। परम तारक परमात्मा ने भगवती सूत्र में अनन्त परमाणु एवं स्कंधों के समूह को पुद्गलास्तिकाय कहा है। स्थानांग में पंचवर्ण, पंचरस, दो गंध, आठ स्पर्श वाला रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का अंशभूत द्रव्य पुद्गलास्तिकाय है।200 समवायांग की टीका में रूप, रस, गंध और स्पर्श वाले द्रव्य को पुद्गलास्तिकाय कहा गया है।201 * पंचास्तिकाय में जो कुछ भी दिखाई देता है तथा पाँच इन्द्रियों का विषय होने योग्य है, उसे पुद्गलास्तिकाय कहते हैं यदृश्यमानं किमपि पंचेन्द्रियविषययोग्यं स पुद्गलास्तिकायोभव्यते / 202 वाचक उमास्वाति म.सा. ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः।205 * सभी पुद्गल स्पर्श, रस, गंध, वर्णवान हुआ करते हैं। कोई पुद्गल ऐसा नहीं है, जिसमें ये चारों गुण न पाये जाते हैं। . . उपाध्याय यशोविजय न्यायालोक में पुद्गल के लक्षण बताते हुए कहते हैं किग्रहणगुणं पुद्गलद्रव्य तत्र च कचित प्रत्यक्षं कचिदनुमानाऽडगमादिकं च मानमनुसन्धेयम्। पुद्गल का लक्षण ग्रहण गुण है। अन्य के द्वारा पुद्गल भी ग्राह्य बन जाता है। धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य नहीं। घट-पट आदि ग्राह्य पुद्गल द्रव्य प्रत्यक्ष प्रमाण से ही सिद्ध होता है। परमाणु आदि पुद्गल द्रव्य की सिद्धि अनुमान आदि से होती है। अचित्त महास्कंध, शून्यवर्गणा आदि स्वरूप पुद्गल द्रव्य की सिद्धि आगम आदि द्वारा अलग-अलग प्रमाण का अनुसंधान करने की सूचना उपाध्यायजी दे पुद्गल की इसी प्रकार की व्याख्या षड्द्रव्य विचार,205 प्रशमरति,06 अनादिविंशिका, षड्दर्शन समुच्चय की टीका208 में मिलता है। पुद्गलास्तिकाय का लक्षण भगवती में पुद्गलास्तिकाय का लक्षण एवं जीवों की क्या प्रवृत्ति होती है, इसका निरूपण इस प्रकार किया है-हे गौतम! पुद्गलास्तिकाय से जीवों के औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस्, कार्मण, श्रोत्रेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, धारणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, मनयोग, वचनयोग, काययोग और श्वासोच्छ्वास का ग्रहण होता है। पुद्गलास्तिकाय का लक्षण ग्रहण रूप है।209 उत्तराध्ययन सूत्र में पुद्गल का लक्षण निम्नोक्त प्रकार से कहा हैसद्धऽन्धयार उज्जोओ पहा छायाऽडतवे इ वा वण्ण रस गन्ध फासा पुग्गलाणं तु लस्खण।।० 158 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org