Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ जिससे सर्वत्र केवल एकान्तिक और आत्यन्तिक तथा तत्वतः द्रव्य नित्य होता है, जो त्रिकालिक सम्पूर्ण गुण तथा पर्याय का आधार है। अतः द्रव्य, गुण और पर्याय को कथंचित् भेदाभेदता शास्त्रार्थ से युक्त है। द्रव्य, गुण, पर्याय रास में उपाध्याय यशोविजय ने एक गाथा में अन्य दर्शनों के साथ जैन दर्शन की मान्यता को स्पर्श कर दी है भेद भणे नैयायिकोजी, सांख्य अभेद प्रकाश। जैन उभय विस्ताराजी पाने सुजशविलास।।" कुछ मत्यांध दार्शनिक जगत् में प्रत्येक द्रव्य को नया द्रव्य, गुण, पर्याय को भी सर्वथा एक-दूसरे से भिन्न मानते हैं, जिसमें नैयायिक आदि तथा कुछ सांख्यादिक भिन्न-भिन्न द्रव्यों को तथा द्रव्य के स्वाभाविक और वैभाविक परिणमन को सर्वथा अभिन्न स्वीकारते हैं। इस प्रकार एकान्त पक्षपाती एक-दूसरे के प्रति मत्सर ईर्ष्या भाव वाले होते हैं जबकि जैन प्रत्येक द्रव्य को एक-दूसरे से कथंचित् भिन्न-भिन्न उत्पाद, व्यय, ध्रुव परिणामीत्व तथा प्रत्येक द्रव्य को भी अपने गुण-पर्याय से भी कथंचित् भिन्नाभिन्न तथा नित्यानित्य स्वरूपी मानते हुए सर्वत्र यथातथ्य भाव से रहते समाधि रूप परमात्म पद को प्राप्त करता है। द्रव्यों का वर्गीकरण द्रव्य व्यवस्था, जैन विज्ञान का विलक्षण आविष्कार है। द्रव्य के कितने भेद हो सकते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसके उत्तर अनेक रूपों में सामने आते हैं। . सामान्य दृष्टि से तो द्रव्य एक है, वही सत् है, यही तत्त्व है और यही महासत्ता भी है। सत्ता सामान्य की दृष्टि से द्रव्य के जड़-चेतन, नित्य-अनित्य, रूपी-अरूपी, मूर्त-अमूर्त, गुण-पर्याय, सामान्य-विशेष सब एक है। विशेष दृष्टि से भगवतीजी तथा अनुयोगसूत्र में द्रव्य के दो भेद उल्लिखित हैं कइविहाणं भंते? दव्वा पण्णता? गोयमा। दुविहा पण्णता ते जहा-जीवदव्वाय अजीवदव्वा य। भगवती और अनुयोगद्वार सूत्र में गौतम स्वामी भगवान से प्रश्न करते हैं कि-हे भगवन! द्रव्य के कितने भेद हैं? भगवान ने कहा-हे गौतम! द्रव्य के दो भेद हैं-जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य। अजीव द्रव्य के दो भेद हैं-रूपी अजीवद्रव्य और अरूपी अजीवद्रव्य। पुनः अरूपी अजीवद्रव्य के दस भेद इस प्रकार हैं-1. धर्मास्तिकाय, 2. धर्मास्तिकाय के देश, 3. धर्मास्तिकाय के प्रदेश, 4. अधर्मास्तिकाय, 5. अधर्मास्तिकाय के देश, 6. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, 7. आकाशास्तिकाय, 8. आकाशास्तिकाय के देश, 9. आकाशास्तिकाय के प्रदेश, 10. काल / भगवती में सभी द्रव्य छः प्रकार से बताये हैंकतविहा णं भंते! सव्व दव्वा पन्नता! गोयमा! छव्विहा सव्वरव्वा पन्नता, ते जहा धम्मत्यिकाए अधम्मत्यिकाए जाव अधासमए। द्रव्य छः प्रकार के हैं-धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. पुद्गलास्तिकाय, 5. जीवास्तिकाय और 6. काल।। 144 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org