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श्री सीमा पूजन तु विभाव में ही तन्मय है बस कमवत को छोड़ ।
निय चैतन्य तत्व की निर्मला से है अब नाक मोड़ ।। अविनश्वर अविकारी सुखमय सिद्ध स्वरूप विपल पेश । मुझमें है मुझसे ही प्रगटेगा स्वरूप अविकल पेस ॥१२॥ ॐ ही गमो सिमा सिर परमेष्टिने पूर्ण मि. स्वाहा । शुद्ध स्वधावी आत्मा निश्चय सिद्ध स्वरूप । गुण अनन्तयुत ज्ञानमय है त्रिकाल शिवभूप ।
इत्याशीर्वादः जाप्यमंत्र-ॐ ह्रीं श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठिभ्यो नमः
श्री सीमंधर पूजन जय जयति जय श्रेयांश नप सुत सत्यदेवी नन्दनम् । चऊ घाति कर्म विनष्ट कर्ता ज्ञान सूर्य निरन्जनम् ।। जय जय विदेहीनाथ जय जय धन्य प्रभु सीमन्धरम् । सर्वज्ञ केवलज्ञानधारी जयति जिन तीर्थकरम् ॥ ॐ ही श्री सीमन्धर जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् ॐ ह्रीं श्री सीपन्धर जिन अत्र तिष्ठ तिष्ठ । *ही श्री सोमन्धर बिन अब मम् सनिहितो भव भव वषट् । यह जन्म मरण का रोग, हे प्रभु नाश करूँ। दो सम रस निर्मल नीर, आत्म प्रकाश करूं।। शाश्वत जिनवर भगवन्त, सीमन्धर स्वामी । सर्वज्ञ देव अरहंत, प्रभु अन्तरयामी । ॐ ही श्री सीमन्धर जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि । चन्दन हरता तन ताप, तुम भव ताप हरो । निज समशीतल हे नाथ मुझको आप करो शाश्वत.॥२॥ ॐही मी सोमन्धर जिनेन्द्राय संसारताप विनासनाव बदन नि । इस भव समुद्र से नाथ, मुझको पार करो। अक्षय पद दे जिनराज, अब उद्धार करो शाश्वत.॥३॥
श्री सीमन्मर जिनेन्द्राय अवयपद प्रापा मम नि ।