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जैन पूजाजलि सम्यक दृष्टि जीव के होते भोग निर्जरा के कारण ।
मिथ्या दृष्टि जीव के होते भोग बध ही के कारण ।। ॐ ह्री श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्राय पूर्णाष्य नि स्वाहा । चरणो मे अजचिन्ह सुशोभित कुन्थुनाथ प्रतिमा अभिराम । जो जन मन वचतन से पूजे जन पाते हैं शिवधाम ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र - ॐ ह्री श्री कुन्थुनाथ जिनेन्दाय नम
श्री अरनाथ जिन पूजन जय जय श्री अरनाथ जिनेश्वर परमेश्वर अरि कर्मजयी । अमल अतुल अविकल अविनाशी प्रभु अनत गुणधर्ममयी ॥ अष्टा-दशम तीर्थंकर जिन वीतराग विज्ञानमयी । सकल लोक के ज्ञाता दृष्टा निजानन्द रस ध्यानमयी । ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर-अवतर सवौषट ॐ हो श्री अरनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ 1ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सत्रिहितो भव भव वषट । परम अहिंसामयी धर्म शुचिमय पावन जल लाऊँ । षटकायक की दया पालकर निज की दया निभाऊँ।। श्री अरनाथ चरण चिन्हो पर चलकर शिवपद पाऊँ । सुदृढ भक्ति नोका पर चढकर भवसागर तर जाऊँ ॥१॥ ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । परम सत्यमय धर्म ग्रहणकर शीतल चन्दन लाऊँ। परद्रव्यो से राग तोडकर निज की प्रीति जगाऊँ ।।श्री अरनाथ ।।२।। ॐ ह्री श्री अरनाथ जिनेन्द्राय ससारनापविनाशनायचदन नि । परम अचौर्यमयी म्वधर्म के उज्ज्वल अक्षत लाऊँ। पर पदार्थ से ममता छोई निज से ममत बढाऊँ ।श्रीअरनाथ ॥३॥ ॐ ही श्री अरनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपट प्राप्तये अक्षत नि । परमशील निज ब्रह्मचर्य मय धर्म कुसुन उरलाऊँ। शुद्ध स्वरूपाचरण भव्य चारित्र किरण प्रगटाऊँ।श्री अरनाथ ॥४॥