Book Title: Jain Punjanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Rupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala

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Page 291
________________ श्री तीर्थकर गणधरवलय पूजन भोग-तृप्ति तृष्णा आशा अज्ञान विपति नहीं है लेश । बधन-से मैं सदा रहित हू मुक्त स्वरुपी मेरा वेश ।। जयमाला चौबीसो जिनराज के श्री गणधर भगवान । विनय भाव से मै नमू पाऊँ सम्यकज्ञान ॥१॥ तीर्थकर गणधर की सख्या और मुख्य गणधर के नाम । भक्तिभाव से अर्घ चढाऊँ विनय सहित मैं करूँ प्रणाम ।।२।। ऋषभदेव के चौरासी गणधर मे वृषभसेन नामी ।। अजितनाथ के नब्बे मे थे केसरिसेन ज्ञानधामी ॥३॥ सम्भव के एक सौ पाँच मे चारुदत्त गणधर स्वामी । अभिनन्दन के एक सो तीन मे वज्रचमर ऋषि गुणधामी ।।४।। सुमतिनाथ के एक शतक सोलह मे, हुए वज्रस्वामी ।। पदमप्रभ के एक शतक ग्यारह मे प्रमुख चमर नामी ।।५।। श्री सपार्श्व के पचानवे प्रमुख बलदत्त महा विद्वान । चन्द्रप्रभ के तिरानवे मे मुख्य श्री वैदर्भ महान ।।६।। पुष्पदन्त के अट्ठासी मे मुख्य नाग ऋषि हुए प्रधान । शीतल जिनके सत्तासी मे हुए कुन्थु मुनि श्रेष्ठ महान ।।७।। प्रभु श्रेयासनाथ के गणधर हुए सतत्तर धर्म प्रधान । वासुपूज्य के छयासठ मे थे गणधर मन्दर महामहान ।।८।। विमलनाथ के पचपन गणधर मे थे जय ऋषिराज स्वरूप । श्री अनन्तजिन के पचास गणधर में मुख्य अरिष्ट अनूप ।।९।। धर्मनाथ के तिरतालीस गणधरो मे थे सेन महन्त । शातिनाथ के थे छत्तीस मुख्य चक्रायुध श्री भगवन्त ।।१०।। कुन्थुनाथ प्रभु के थे पैतिस मुख्य स्वयभू गणधर थे । अरहनाथ के तीस गणधरों में भी कुम्भ ऋषीश्वर थे ।।११।। मल्लिनाथ के अट्ठाइस गणधर मे मुख्य विशाख प्रधान । मुनिसुव्रत के अट्ठारह मे मुख्य हुए मुनि पल्लि महाना।१२।। श्री नमिनाथ जिनेश्वर के सतरह गणधरों मे सप्रम देव ।

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