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जैन पूजाँजलि ज्ञानमयी वैराग्य भाव उपयुक्त हो गया उसी समय ।
द्रव्य दृष्टि से सदा शुद्ध निज भाव हो गया उसी समय ।। यहा अनेको भव्य जिनालय प्रभु की महिमा गाते हैं । जो प्रभु का दर्शन करते उनके सकट टल जाते हैं ॥१३॥ चपापुर के तीर्थ क्षेत्र को बार बार मेरा बदन । सम्यक दर्शन पाऊँगा मै नाश करूँगा भव बधन ।।१४।। ॐ ह्रीं श्री चपापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो पूर्णाय नि स्वाहा ।।
चपापुर के तीर्थ की महिमा अपरम्पार । निज स्वभाव जो साधते हो जाते भवपार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र-ॐ ह्री श्री चपापुर तीर्थ क्षेत्रेभ्यो नम ।
श्री गिरनार निर्वाण क्षेत्र पूजन उर्जयत गिरनार शिखर निर्वाण क्षेत्र को करूं नमन । नेमिनाथ स्वामी ने पाया, सिद्ध शिला का सिंहासन ।। शबु प्रद्युम्न कुमार आदि अनिरुद्ध मुनीश्वर को वदन । कोटि बहात्तर सातशतक मुनियो ने पाया मुक्ति सदन ।। महा भाग्य से शुभ अवसर पा करता हूँ प्रभु पद पूजन । नेमिनाथ की महा कृपा से पाऊँ मै सम्यक दर्शन ।। ॐ ह्री श्री गिरनार तीर्थक्षेत्र अत्र अवतर अवतर सवौषट् ॐ ह्रीं श्री गिरनार तीर्थक्षेत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॐ ह्री श्री गिरनार तीर्थक्षेत्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट। मै शुद्ध पावन नीर लाऊँ भव्य समकित उर धरूँ। मै शुभ अशुभ परभाव हर कर स्वय को उज्ज्वल करूँ ।। मै उर्जयन्त महान गिरि गिरनार की पूजा करूं । मैं नेमि प्रभु के चरण पकज युगल निज मस्तक धरूँ ॥१॥ ॐ ही श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि मैं सरस चदन शुद्ध भावो का सहज अन्तर धरूँ। मैं शुभ अशुभ भवताप हर कर स्वय को शीतल करूँ मैं ॥२॥