Book Title: Jain Punjanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Rupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala

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Page 314
________________ २९८ - जैन पूजांजलि निश्चय नाम अभेद वस्तु का और भेद का है व्यवहार । अज्ञानी व्यवहाराश्रित है ज्ञानी को निश्चय आधार । । ॐ ह्रीं श्री पावापुर तीर्थक्षेत्र अत्र अवतर अवतर सौषट् *ही श्री पावापुर तीर्थक्षेत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॐ ही श्री पावापुर तीर्थक्षेत्र अत्र मम सनिहितो भव भव वषट् । प्रभु पा सरोवर नीर प्रासक लाया हैं। मिथ्यात्त्व दोष को क्षीण करने आया हूँ। पावापुर तीर्थं महान भारत में नामी । जय महावीर भगवान त्रिभुवन के स्वामी ॥१॥ ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो जन्मजरा मृत्यु विनाशनाय जल नि । बावन चदन तरु सार उत्तम लाया हूँ। निज शान्त स्वरूप अपार पाने आया हूँ पावापुर ॥२॥ ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो ससार ताप विनाशनाय चदन नि । धवलोज्ज्वल तदुल पुन्ज भगवन लाया हूँ। प्रभु निज शुद्धातम कुन्ज, पाने आया हूँ । (पावापुर ॥३।। ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षत नि । कल्पद्रुम सुमन मनोज्ञ सुरभित लाया हूँ। अतर का स्वपर विवेक पाने आया हूँ। पावापुर ।।४।। ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो कामवाण विध्वसनाय पुष्प नि । चरू विविध भॉति के दिव्य अनुपम लाया हूँ। चैतन्य स्वभाव सुभव्य पाने आया हूँ पावापुर ।।५।। ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि । ज्योतिर्मय दीप प्रकाश नूतन लाया हूँ। अज्ञान मोह का नाश करने आया हूँ । पावापुर ॥६।। ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो मोहाधकार विनाशनाय दीप नि । भावो की अनुपम धूप शुचिमय लाया हूँ। निज आतमरूप अनूप पाने आया हूँ ।। पावापुर ॥७॥ ॐ ह्री श्री पावापुर तीर्थक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूप नि ।

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