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जैन पूजांजलि निन्दा करने वाले का उपकार मानता समभावी ।
निज में सावधान रहता है होता कभी न भव भावी ।। गिरनार तीर्थंकर सिद्ध क्षेत्रेभ्यो नमः । पावागढ, तु गीगिरी, गजपथ, मुक्तागिर सिद्धवर कूट, ऊन बडवानी पावागिरि कुण्डलपुर सोनागिर राजगृही मन्दारगिरी, द्रोणगिरी अहार जी आदि समस्त सिद्धक्षेत्रेभ्यो नम । जैनबिद्री मूलबद्री मक्सी, अयोध्या कम्पिलापुरी आदि अतिशय क्षेत्रेभ्यो नम । समस्त तीर्थकर पचकल्याणतीर्थक्षेत्रेभ्यो नम । श्री गौतम स्वामी, कुन्दुकुन्दाचार्य एव चारणऋद्धिधारी सात परम ऋषिभ्यो नम । इति उपर्युक्तेभ्य सर्वेभ्यो अर्घ्यं नि स्वाहा ।
शान्ति पाठ इन्द्र नरेन्द्र सुरो से पूजित वृषभादिक श्री वीर महान । साधु मुनीश्वर ऋषियो द्वारा वन्दित तीर्थंकर विभुवान ॥१॥ गणधर भी स्तुति कर हारे जिनवर महिमा महामहान । अष्ट प्रातिहार्यों से शोभित समवशरण मे विराजमान ॥२॥ चौतीसो अतिशय से शोभित छयालीस गुण के धारी । दोष अठारह रहित जिनेश्वर श्री अरहत देव भारी ॥३॥ तरु अशोक सिंहासन भामण्डल सुर पुष्पवृष्टि यछत्र । चौसठ चमर दिव्य ध्वनि पावन दुन्दुभि देवोपम सर्वत्र ।।४।। पति श्रुति अवधिज्ञान के धारी जन्म समय से हे तीर्थेश । निज स्वभाव साधन के द्वारा आप हुए सर्वज्ञ जिनेश ।।५।। केवलज्ञान लब्धि के धारी परम पूज्य सुख के सागर । महा पचकल्याण विभूषित गुण अनन्त के ही आगर ॥६॥ सकल जगत मे पूर्णशाति हो, शासन हो धार्मिक बलवान । देश राष्ट्रपुर ग्राम लोक मे शतत शाति हो हे भगवान ॥७॥ उचित समय पर वर्षा हो दुर्भिक्ष न चोरी मारी हो । सर्व जगत के जीव सुखी हो सभी धर्म के धारी हो ॥८॥ रोग शोक भय व्याधि न होवे ईति भीति का नाम नहीं । परम अहिंसा सत्य धर्म हो लेश पाप का काम नहीं ॥९॥