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श्री गिरनार निर्वाण क्षेत्र पूजन जीव तत्व का आलबन सवर निर्जरा मोक्ष हित रूप ।
है आलबन अजीव तत्व का आस्त्रव बध अहित दुख रूप ।। ॐ ही श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो ससारताप विनाशनाय चदन नि मैं धवल अक्षत भावमय ले आत्म का अनुभव करूँ। मै शुभ अशुभ भव राग हर कर स्वय अक्षयपद वरूँ।मैं ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । मैं चिदानद अनूप पावन सुमन मन भावन धरूँ। मैं लाख चौरासी गुणोत्तर शील की महिमा वरूँ। मैं ॥४॥ ॐ ही श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो कामवाणविध्वसनाय पुष्प नि । मै सरल सहजानद मय नैवेद्य शुचिमय उर धरूँ। मै अमल अतुल अखड चिन्मय सहज अनुभव रस वरूँ। मैं ॥५॥ ॐ ह्री श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि । मै भेद ज्ञान प्रदीप से मिथ्यात्व के तम को हरूँ। मै पूर्ण ज्ञान प्रकाश केवल्झान ज्योति प्रभा व मि ॥६॥ ॐ ह्री श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । मैं भावना भवनाशिनी की धूप निज अन्तर धरूँ। वसु कर्मरज से मुक्त होकर निरजन पद आदरूँ। मैं ॥७॥ ॐ ह्री श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो दुष्टाष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि । मै शुद्ध भावो के अमृतफल प्राप्त कर शिव सुख भरूँ । मै अतीन्द्रिय आनन्द कद अनत गुणमय पट वरूँ। मै ।।८।। ॐ ही श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फल नि ।” मै पारिणामिक भाव का ले अर्घ निज आश्रय करूँ। मै शुद्ध सादि अनत शाश्वत परमसिद्ध स्वपद वरूँ ।।मैं ॥९॥ ॐ ही श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो अनर्घपद प्राप्तये पूर्णाऱ्या नि ।
जयमाला उर्जयत गिरनार, को निशि दिन करूं प्रणाम । निज स्वभाव की शक्ति से लैं सिद्धों का धाम ॥१॥