Book Title: Jain Punjanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Rupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala

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Page 306
________________ २९० - जैन पूजाँजलि धौव्य तत्व का निर्विकल्प बहुमान हो गया उसी समय । भव वन में रहते रहते भी मुक्त हो गया उसी समय । । कूट सिद्धवर अजितनाथ का धवलकूट सुमतिजिन का । अभिनन्दन आनन्दकूट जय अविचलकूट सुमतिजिन का ॥१०॥ मोहनकूट पाप्रभु का है प्रभु सुपार्श्व का प्रभासकूट । ललितकूट चदाप्रभु स्वामी पुष्पदन्त जिन सुप्रभुकूट ।।११।। विद्युतकूट श्री शीतलजिन श्रेयास का संकुलकूट । श्री सुवीरकुलकूट विमलप्रभु नाथ अनन्त स्वयभूकूट ।।१२।। जय प्रभु धर्म सुदत्तकूट जय शाति जिनेश कुन्दप्रभुकूट । कुटज्ञानधर कुन्थनाथ का अरहनाथ का नाटक कूट ।।१३।। सवर कूट मल्लि जिनवर का, निर्जर कूटमुनि सुव्रतनाथ । कूट मित्रधर श्री नमि जिनका स्वर्णभद्र प्रभु पारसनाथ ।।१४।। सर्व सिद्धवर कूट आदिप्रभु वासुपूज्य मन्दारगिरि । उर्जयन्त है कूट नेमि प्रभु सन्मति का महावीर श्री ।।१५।। चोबीमो तीर्थंकर प्रभु के गणधर स्वामी सिद्ध भगवान । गणधरकूट भाव से पूर्जे मै भी पाऊँ पद निर्वाण ॥१६।। बीसकूट से बीस तीर्थकर ने पाया मोक्ष महान । इसी क्षेत्र मे तो असख्य मुनियो ने पाया है निर्वाण।।१७।। भव्य गीत सम्यक दर्शन का सहज सुनाई देता है । रत्नत्रय की महिमा का फल यहाँ दिखाई देता है ।।१८।। सिद्ध क्षेत्र है तीर्थ क्षेत्र है पुण्य क्षेत्र है अति पावन । भव्य दिव्य पर्वतमालाये ऊची नीची मन भावन ।।१९।। मधुवन मे मन्दिर अनेक है भव्य विशाल मनोहारी ।। वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर की प्रतिमाएँ सुखकारी ॥२०॥ नन्दीश्वर की सुन्दर रचना श्री बाहुबलि के दर्शन । ज्या मानस्तम्भ सुशोभित पार्श्वनाथ का समवशरण ॥२१ ।। पुण्योदय से इस पर्वत की सफल यात्रा हो जाये । नरक और पशुगति का निश्चित बध नहीं होने पाये ॥२२॥

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