Book Title: Jain Punjanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Rupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala

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Page 300
________________ २८४ जैन पूजांजलि नए वर्ष का प्रथम दिवस ही नूतन दिन कहलाता है । पर नूतन दिन वही कि जिस दिन तत्त्व बोध हो जाता है ।। - चतुर्विशति तीर्थकर पंच- निर्वाण - क्षेत्र पूजन-विधान जिनागम मे वर्तमान चतुर्विंशति तीर्थंकरो मे से प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव कैलाश पर्वत से अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीरस्वामी पावापुर से भगवान नेमिनाथ गिरनार पर्वत से भगवान वासुपूज्य चम्पापुर से तथा अन्य २० तीर्थंकर महान तीर्थराजसम्मेदशिखर जी से मोक्ष पधारे । इन तीर्थंकरो की पावन निर्वाण भूमिया बन्दनीय है । एक लधु विधान के रुप मे है । धर्मार्थी बधु इसे एक दिन मे सम्पन्न कर सकते हैं । सामान्य पूजन स्थापना एव विसर्जन की जो विधि इस सग्रह मे अन्यत्र दी गई है । उसका अनुसरण करके नित्य पूजन करके विधान किया जा सकता है। यदि हम प्रत्यक्ष मे वहा जाकर इन क्षेत्रो की पूजन अर्चन न कर सके तो यही से हो इन क्षेत्रो की पूजन विधान करके अपने आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करे । यही भावना है। श्री अष्टापद कैलाश निर्वाण क्षेत्र पूजन अष्टापद कैलाश शिखर पर्वत को बन्दु बारम्बार । ऋषभदेव निर्वाण धरा की गूज रही है जय जयकार ।। बाली महाबालि मुनि आदिक मोक्ष गये श्री नागकुमार । इस पर्वत की भाव वदना कर सुख पाऊँ अपरम्पार ।। वर्तमान के प्रथम तीर्थंकर को सविनय नमन करूँ । श्री कैलाश शिखर पूजन कर सम्यक दर्शन ग्रहण करूँ ।। ॐ ही श्री अष्टापद कैलाश तीर्थक्षेत्र अत्र अवतर अवतर सवोषट्, ॐ ही श्री अष्टापद कैलाश तीर्थक्षेत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, ॐ ही श्री अष्टापद कैलाश तीर्थक्षेत्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।

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