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श्री अष्टापद कैलाश निर्वाण क्षेत्र पूजन धीर वीर गंभीर शल्य से रहित सयमी साधु महान ।
इनके पद चिन्हों पर चल कर तू भी अपने को पहचान । । ज्ञानानद स्वरूप आत्मा सम्यक जल से है परिपूर्ण । घुव चैतन्य त्रिकाली आश्रय से हो जन्म मरणसब चूर्ण । ऋषभदेव चरणाम्बुज पूजें वन्दू अष्टापद कैलाश । नागकुमार बालि आदिक ने पाया चिन्मय मोक्ष प्रकाश ॥१॥ ॐ ही श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायजल नि ज्ञानानद स्वरूप आत्मा मे है चित्चमत्कार की गध । ध्रुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से होता कभी न बध । ऋिषभ ॥२॥ ॐ ह्री श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो ससारताप विनाशनाय चदन नि सजजानद स्वरूप आत्मा मे अक्षय गुण का भडार । ध्रुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से मिट जाता ससार । ऋिषभ ।।३।। ॐ ही श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो अक्षयपद प्रापताय अक्षत नि सहजानद स्वरूप आत्मा मे हैं शिव सुख सुरभि अपार । ध्रुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से जाती काम विकार ऋषभ ।।४।। ॐ ही श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो कामवाणविध्वसनाय पुष्प नि पुर्णानन्द स्वरूप आत्मा मे है परम भाव नैवेद्य । ध्रुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से हो जाता निर्वेद । ऋषभ ।।५।। ॐ ही श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि पूर्णानन्द स्वरूप आत्मा पूर्ण ज्ञान का सिंधु महान । घुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से होते कर्म विनाश । ऋषभ ।।६।। ॐ ह्री श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि नित्यानद स्वरूप आत्मा मे है ध्यान धूप की वास । ध्रुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से होते कर्म विनाश । ऋषभ ।।७।। ॐ ही श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो दुष्टाष्टकर्मविध्वसनाय धूप नि सिद्धानद स्वरूप आत्मा मे तो शिव फल भरे अनन्त । घुव चैतन्य त्रिकाली के आश्रय से होता मोक्ष तुरन्त । ।ऋषभ ॥८॥ ॐ ही श्री अष्टापदकैलाशतीर्थक्षेत्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्ताय फल नि