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श्री भविष्यकाल चौबीसी
२७९ इच्छा से चिन्ता होती है चिन्ता से होता है क्लेश ।
मुझे न कोई भी चिन्ता है मुझमें चिन्ता कहीं न लेश । । ललितकूट पर चन्दा प्रभु को भाव सहित सादर वन्, । सुप्रभकूट सुविधि जिनवर श्री पुष्पदन्त पद अभिनन्, ॥८॥ विधुतकूट श्री शीतल जिनवर के चरण कमल पावन ।। सकुल कूट चरण श्रेयासनाथ के पूर्ने मन भावन ।।९।। श्री सुवीरकुल कूट भाव से विमलनाथ के पद बन्दू । चरण अनन्तनाथ स्वामी के कूट स्वयभू पर बन्दू ॥१०॥ कूट सुदत्त पूजता हूँ मैं धर्मनाथ के चरण कमल । न, कुन्दप्रभ कूट मनोहर शान्तिनाथ के चरण विमल ॥११॥ कुन्थुनाथ स्वामी को वन्दू कूट ज्ञानधर भव्य महान । नाटक कट श्री अरनाथ जिनेश्वर पद का ध्याऊँ ध्यान ॥१२॥ सबल कूट मल्लि जिनवर के चरणो की महिमा गाऊँ । निर्जरकूट श्री मुनिसुव्रत चरण पूजकर हर्षाऊँ ।।१३॥ कूट मित्रधर श्री नमिनाथ तीर्थंकर पद करूँ प्रणाम । स्वर्णभद्र श्री पार्श्वनाथ प्रभु को नित वन्दूँ आठो याम ॥१४॥ तीर्थंकर निर्वाण भूमियाँ तीर्थ क्षेत्र कहलाती हैं । मुनियो की निर्वाण भूमियाँ सिद्ध क्षेत्र कहलाती है ।।१५।। गर्भ जन्म तप ज्ञान भूमियाँ अतिशय क्षेत्र कहलाती हैं । इन सब तीर्थों की यात्रा से उर पवित्रता आती है ॥१६॥ अपना शुद्ध स्वभाव लक्ष्य मे लेकर जो निज ध्यान धरूँ।। सादि अनन्त समाधि प्राप्त कर परम मोक्ष निर्वाण वरूँ ॥१७॥ ॐ ही श्री तीर्थकर निर्वाण क्षेत्रेभ्यो पूर्णार्घ्य नि स्वाहा ।
सिद्ध भूमि जिनराज की महिमा अगम अपार । निज स्वभाव जो साधते वे होते भव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमन्त्र - ॐ ह्री श्री तीर्थकर निर्वाण क्षेत्रेभ्यो नम ।