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श्री पार्श्वनाथजिन पूजन
२६३ शाश्वत भगवान विराजित है आनद क्द तेरे भीतर ।
पुद्गल तन में अपनत्व मान देखा न कभी निज रुप प्रखर । । श्रद्धा भाव विनय से करता श्री चरणो का मै अर्चन ।। ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर-अवतर सवौषट्, ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र अब मम सत्रिहितो भव भव वषट् । समकित जल से तो अनादि की मिथ्याभ्राति हटाऊँ मै । निज अनुभव से जन्ममरण का अन्त सहज पाजाऊँ मै ।। चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं । सकटहारी मगलकारी श्री जिनवर गण गाऊँ मै ॥१॥ ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । तन की तपन मिटाने वाला चन्दन भेट चढाऊँ मै । भव आताप मिटाने वाला समकित चन्दन पाऊँमै चिन्ता ॥२॥ ॐ हो श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय वदन नि । अक्षत चरण समर्पित करके निजस्वभाव मे आऊँमै । अनुपम शान्त निराकुल अक्षय अविनश्वर पद पाऊँमै चिन्ता ।।३।। ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेनद्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । अष्ट अगयुत सम्यक दर्शन पाऊँ पुष्प चढाऊँ मै । कामवाण विध्वस करूँ निजशील स्वभाव सजाऊँ।। चिन्ता ॥४।। ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामवाण विध्वसनाय पुष्प नि इच्छाओ की भूख मिटाने सम्यक पथ पर आऊँमै । समकित का नैवेद्य मिले तो क्षुधारोग हर पाऊँमै ।। चिन्ता ।।५।। ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि मिथ्यातम के नाश हेतु यह दीपक तुम्हे चढाऊँ मै । समकित दीप जले अन्तर मे ज्ञानज्योति प्रगटाऊँमै चिन्ता ।।६।। ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि समकित धूप मिले तो भगवन् शुद्ध भाव मे आऊँमै । भाव शुभाशुभ धूम्र बने उड़ जाये धूप चढाऊँमै चिन्ता ॥७॥ ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि उत्तमफल चरणों मे अर्पित आत्मध्यान ही ध्याऊँ मैं ।