________________
२६४
जैन पूजाजलि छह द्रव्यों से भी श्रेष्ठ द्रव्य, नव तत्वों से भी परम तत्व ।
सच्चिदानद आनद बद सर्वोत्कृष्ट निज आत्म तत्व ।। समकित का फल महामोक्षफल प्रभुअवश्य पा जाऊँ।।चिन्ता ।।८।। ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फल नि अष्ट कर्म क्षय हेतु अष्ट द्रव्यो का अर्घ बनाऊँ मै । अविनाशी अविकारी अष्टम वसुधापति बन जाऊँ मै चिन्ता ।।९।। ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अयं नि ।
श्री पंचकल्याणक प्राणत स्वर्ग त्याग आये माता वामा के उर श्रीमान । कृष्ण दूज वैशाख सलोनी सोलह स्वप्न दिखे छविमान । पन्द्रह मास रत्न बरसे नित .मगलमयी *गर्भ कल्याण । जय जय पार्श्वजिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जयजय दयानिधान ।।१।। ॐ ह्री वैशाखकृष्ण द्वितीया गर्भकल्याणक प्राप्ताय श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । पौष कृष्ण एकादशमी को जन्मे, हुआ जन्म कल्याण । ऐरावत गजेन्द्र पर आये तब सौधर्म इन्द्र ईशान । गिरि सुमेरु पर क्षीरोदधि से किया दिव्यअभिषेक महान । जय जय पार्वजिनेश्वरप्रभु परमेश्वर जय जय दयानिधान ।।२।। ॐ ही पौषकृष्णएकादश्या जन्मकल्याणकप्राप्त श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय प्राप्ताय अयं नि । बाल ब्रह्मचारी वतधारी उर छाया वैराग्य प्रधान । लौकातिक देवो ने आकर किया आपका जय जय गान ।। पौष कृष्ण एकादशमी को हुआ आपका तप कल्याण । जय जय पाश्र्व जिनेश्वरप्रभु परमेश्वर जय जय दयानिधान।।३।। ॐ ही पौषकृष्ण एकादश्या तप कल्याणकप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि । कमठ जीव ने अहिक्षेत्र पर किया घोर उपसर्ग महान । हए न विचलित शक्ल ध्यानधर श्रेणी चढे हुए भगवान ।। चैत्र कृष्ण की चौथ हो गई पावन प्रगट केवलज्ञान । जय जय पार्श्व जिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जय जय दयानिधान ।।४।।