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श्री महावीर जिन पूजन निज से त अनभिज्ञ अपरिचित पर से क्यों संबंधित है ।
दुष्कर्मों में दत्त चित्त है भोगों से स्पंदित है ।। चैत्र शुक्ल शुभ त्रयोदशी का दिवस पवित्र महान । हुए अवतरित भारत भू पर जग को दुखमय जान || धन्य ।।२।। ॐही चैत्रशुक्लात्रयोदश्या जन्मकल्याणक प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अयं नि । जग को अथिर जान छाया मन मे वैराग्य महान । मगसिर कृष्णदशमी के दिन तप हित किया प्रयाण ॥धन्य ॥३॥ ॐ हीं श्री मगसिर कृष्णदशम्या तपकल्याणक प्राप्ताय श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अयं नि । शुक्ल ध्यान के द्वारा करके कर्म घाति अवसान । शुभ वैशाख शुक्ल दशमी को पाया केवलज्ञान ॥धन्य ॥४॥ ॐ ही बैशाखशुक्ल दशम्या ज्ञानकल्याण प्राप्ताय श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अयं नि श्रावण कृष्ण एकम के दिन दे उपदेश महान । दिव्यध्वनि से समवशरण मे किया विश्व कल्याण ।। धन्य ।।५।। ॐ ह्री श्रावणकृष्णएकम् दिव्यध्वनि प्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय अयं नि । कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पाया पद निर्वाण। पूर्ण परम पद सिद्ध निरन्जन सादि अनन्त महान ॥धन्य ।।६।। ॐ ह्री कार्तिककृष्णअमावश्या मोक्षपदप्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्घ्य नि ।
जयमाला जय महावीर त्रिशला नन्दन जय सन्मति वीर सुवीर नमन । जय वर्धमान सिद्धार्थ तनय जय वैशालिक अतिवीर नमन ॥१॥ तुमने अनादि से नित निगोद के भीषण दुख को सहनकिया । जस हुए कई भव के पीछे पर्याय मनुज मे जन्म लिया ॥२॥ पुरुरवा भील के जीवन से प्रारम्भ कहानी होती है । अनगिनती भव धारे जैसी मति हो वैसी गति होती है ।।३।। पुरुषार्थ किया पुण्योदय से तुम भरत पुत्र मारीच हुए । मुनि बने और फिर भ्रमित हुए शुभ अशुभभाव के बीचहुए ।।४।।