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जैन पूजाजलि स्वाध्याय के स्वर्णिम रथ पर, चढकर चलो मुक्ति की ओर ।
स्वाध्याय से ही पाओगे, केवल ज्ञानचद्र की कोर ।। नैवेद्य विविध खाकर भी तो यह भूख न मिटपाई अबतक । तृष्णा का उदरन भरपाया, पर की महिमा गाई अबतक ।। भावों के चरु लेकर अब मैं तृष्णाग्निबुझाने आया हूँ।हे महावीर।।५।। ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि । मिथ्याभ्रम अन्धकारछाया सन्मार्ग न मिल पाया अबतक । अज्ञान अमावस के कारण निज ज्ञान न लख पाया अबतक । भावो का दीप जला अन्तर आलोक जगाने आया हूँ ॥हे महावीर।।६।। ॐ ह्री श्री महावीर जिनेन्द्राय मोहाधकार विनाशनाय दीपं नि । कमों की लीला मे पडकर भवभार बढाया है अब तक । ससार द्वद के पदे से निज धूम उडाया हे अब तक । भावो की धूप चढाकर मैं वसु कर्म जलाने आया हूँ ।।हे महावीर।।७।। ॐ ह्री श्री महावीर जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूप नि । सयोगी भावो से भव ज्वाला मे जलता आया अब तक । शुभ के फल मे अनुकूल सयोगो को पा इतराया अब तक ।। भावो का फल ले निजस्वभाव काशिव पुलपाने आया हूँ ।।हे महावीर।।८।। ॐ ह्री श्री महावीर जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फल नि अपने स्वभाव के साधन का विश्वास नहीं आया अब तक । सिद्धत्व स्वय से आता है आभास नहीं पाया अब तक।। भावो का अयं चढ़ाकर मै अनुपमपद पाने आया हूँ ।। हे महावीर ।।९।। ॐ ह्री श्री महावीर जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अयं नि
श्री पंचकल्याणक धन्य तुम महावीरभगवान धन्य तुम वर्धमान भगवान । शुभ आषाढ शुक्ला षष्ठी को हुआ गर्भ कल्याण ॥ माँ त्रिशला के उर मे आये भव्य जनो के प्राण । धन्य तुम महावीर भगवान ॥१॥ ॐ ह्री श्री अषाढशुक्लाषष्ठया गर्भमगल प्राप्ताय महावीरजिनेंद्राय अर्घ्य नि ।