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जैन पूजाजलि टाल अरे तू पचाव को पाल अरे तू पवाचार । परम अहिंसा तप सयमधारी बन कर तज विषय विकार ।।
श्री पंचकल्याणक कार्तिक शुक्ला षष्ठी के दिन शिव देवी उर धन्य हुआ । अपराजित विमान से चयकर आये मोद अनन्य हुआ । स्वप्न फलो को जान सभी के मन में अति आनन्द हुआ । नेमिनाथ स्वामी का गोत्सव मगल सम्पन्न हुआ ॥१॥ ॐ ह्री श्री कार्तिकशुक्ल षष्ठया गर्भमगल प्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन शौर्यपुरी मे जन्म हुआ । नृपति समुद्रविजय ऑगन मे सुर सुरपति का नृत्य हुआ ।। मेरु सुदर्शन पर क्षीरोदधि जल से शुभ अभिषेक हुआ । जन्म महोत्सव नेमिनाथ का परम हर्ष अतिरेक हुआ ।।२।। ॐ ह्री श्री श्रावणशुक्लषण्ठया जन्ममगल प्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । श्रावण शुक्ल षष्टमी को प्रभु पशुओ पर करुणा आई । राजमती तज सहस्त्राम्र वन मे जा जिन दीक्षा पाई ।। इन्द्रादिक ने उठा पालिकी हर्षित मगलचार किया । नेमिनाथ प्रभु के तप कल्याणक पर जय जयकार किया ।।३।। ॐ ही श्रावणशुक्लषष्ठया तपोमगल प्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि आश्विन शुक्ला एकम को प्रभु हुआ ज्ञान कल्याण महान । उर्जयत पर समवशरण मे दिया भव्य उपदेश प्रधान ।। ज्ञानावरण, दर्शनावरणी मोहनीय का नाश किया । नेपिनाथ ने अन्तराय क्षयकर कैवल्य प्रकाश लिया ।।४।। ॐ ह्री श्री आश्विन शुक्ल प्रतिपदाया ज्ञानमगलप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि । श्री गिरनार क्षेत्र पर्वत से महामोक्ष पद को पाया । जगती ने आषाढ शुक्ल सप्तमी दिवस मगल गाया ।। वेदनीय अरु आयु नाम अरु गोत्र कर्म अवसान किया । अष्टकर्म हर नेमिनाथ ने परम पूर्ण निर्वाण लिया ॥५॥ ॐ ही अषाढशुक्लसप्तम्या मोक्षमगल प्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि