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जैन पूजाजलि सभी जीव हों सुखी जगत के सभी निरोगी हो सानन्द ।
सबका हो कल्याण पूर्णत सब ही पाएं पर मानन्द ।। मल्लिनाथपद कलशचिन्ह लख चरणकमल जो ले उरधार । मन वच तन जो ध्यान लगाते वे हो जाते हैं भव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमन्त्र - ॐ ही श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय नम ।
श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजन हे मुनिसुव्रत भगवान तुमने कर्म घाति स्वय हने । कैवल्यज्ञान प्रकाशकर पाया परम पद आपने ।। निज पर विवेक जगा हृदय मे पूर्ण शुद्धात्मा बने । ससार को सन्मार्ग दिखला सिद्ध परमात्मा बने ।। भव सिंधु की मझधार मे डूबा मुझे तारो प्रभो । दो भेद ज्ञान प्रकाश मुझको शीघ्र उद्धारो प्रभो ।। ॐही श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर सवौषट्, ॐ ही मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, ॐ ही श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्र अत्र मम सनिहितो भव भव वषट् । अब आत्म जल की सलिल धारा शुद्ध अन्तर मे धः । यह जन्म मरण अभाव करके स्वपद अजरामर वरूँ।। मै मुनिसुवत भगवान का पूजन करूँ अर्चन करूँ। निज आत्मा मे आपके ही रूप का दर्शन करूँ ॥१।। ॐ ही श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि अब आत्म चन्दन दुख निक्दन शुद्ध अन्तर मे धरूँ। भव भ्रमण ताप अभाव करके स्वपद अजरामर वरूँ मै मुनि ॥२॥ ॐ ह्री श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चदन नि । अब आत्म अक्षत धवल उज्ज्वल शुद्ध अन्तर मे धरूँ। अक्षय अनत स्वरूप पाकर स्वपद अजरामर वरूँ ।। मै मुनि ॥३॥ ॐ ह्री श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि अब आत्म पुष्प सुवासशिवमय शुद्ध अन्तर मे धरूँ। दुष्काम हर निष्काम बनकर स्वपद अजरामर वर्क में मुनि ॥४।।