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जैन पूजाजलि जो चलता है वह समीप है जो न चला वह तो है दूर ।
आत्मा के साक्षात्कार की विधि है ज्ञान कला भरपूर ।। निज चिदानन्द चैतन्य पद का ज्ञान नहीं । अकलक अडोल अनर्घ की पहचान नहीं ।। नमिनाथजिनेन्द्र ॥९॥ ॐ ह्री श्री नमिनाथ जिनेद्रायअनर्धपद प्राप्तायअर्घ्य नि ।
श्री पंचकल्याणक हुआ आगमन पात महादेवी उर मे अपराजित त्याग । स्वप्नफलो को जानजगा नृप विजयराज को अतिअनुराग ।। आश्विन कृष्णा द्वितीया के दिन हुआ गर्भ मगल विख्यात । जय नमि जिनवर रत्न वृष्टि से होता नित आनन्दप्रभात ॥१॥ ॐ ह्री श्री आश्विन कृष्णद्वितीयागर्भमगलप्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि । चार प्रकार सुरो के गृह मे आनन्द वाद्य हुए झकृत । मिहासन हिल उठा इन्द्र का तीनो लोक हए क्षोभित ।। नमिजिन जन्म पुरीमिथिला मे जान हुए सुरगण पुलकित । शुभ अषाढ कृष्ण दशमी को जिन अभिषेक किया हर्षित ॥२॥ ॐ ही श्री अषाढकृष्णदशम्याजन्ममगलप्राप्ताय श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि शुभ आषाढ कृष्ण दशमी को नमिजिन उर वैराग्य जगा । उल्कापात देखकर प्रभु के मन से भव का राग भगा ।।। लौकान्तिक ने अभिनन्दनकर प्रभु का जय जयकार किया । वन जा मौलश्री तरु नीचे सयम अगीकार किया ॥३॥ ॐ ह्री श्री अषाढ कृष्ण दशम्याया तपोमगलप्राप्ताय श्रीनमिनायजिनेन्द्राय अयं नि मगसिर सुदि एकादशी प्रभु ने शुक्ल ध्यानध्याया । वीतराग सर्वज्ञ हुए प्रभु केवल ज्ञान पूर्ण पाया ।। समवशरण मे सतरह गणधरप्रमुख सुप्रभ गणधर गुणवान । मख्यार्यिका मार्गिणी, नमिजिनवर का सब गाते जयगान ।।४।। ॐ ही श्री मगसिरसुदीएकादशी दिने ज्ञानमगलप्राप्ताय श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि चतुर्दशी वैशाख कृष्ण की धारा प्रतिमायोग महान । सर्व कर्म क्षयकर नमिजिन ने पाया मोक्ष स्वपद निर्माण ॥