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श्री मल्लिनाथ जिनपूजन
२४९ व्यसन मुक्त होते ही तेरा अतरंग उज्ज्वल होगा ।
स्वपर दृष्टि होते ही तेरा अतरमन निर्मल होगा ।। मायालोभ कषाय राग की वृद्धि नित्य करती जाती । इनके क्षय होने पर ही तो वीतरागता है आती ।।६।। इनकी चार चौकडी के चक्कर मे चहुगति दुख भरता । द्रव्य क्षेत्र अरु कालभाव भव परिवर्तन पाँचो करता ॥७॥ अनन्तानुबन्धी कषाय तो घात स्वरूपाचरण करे ।। घात देशसयम का यह अप्रत्याख्यानीवरण करे ।।८।। घात सकल सयम का करती प्रत्यख्यानावरण कषाय । यथाख्यात चारित्र घात करती है यह सज्वलन कषाय ॥९॥ नरक त्रिर्यन्च देव नरगति की पाई आयु अनतीबार । सम्यक ज्ञान बिना यह प्राणी अबतक भटका है ससार ।।१०।। मनुज ओर त्रिर्यच आयु उत्कृष्ट तीन पल्यो की है ।। मनुज त्रिर्यच जघन्य आयु केवल अन्तमुहूर्त की है।।११।। देव नरक गति की उत्कृष्ट आयु सागर तैतिस की है । देव नरक की जघन्य आयु दस महस्त्र वर्षों की है ।।१२।। पचेन्द्रिय के पचविषय अरु चार कषाय चार विकथा । निद्रा नेह प्रमाद भेद पदरह के क्षय से मिटे व्यथा ।।१३।। जो प्रमाद का नाश करेगा अप्रमत्त बन जायेगा । सप्तम गुणस्थान पायेगा श्रेणी चढ सुख पायेगा ॥१४॥ यह उपदेश ह्रदय मे धाः सर्व कषाय विनाश करूँ। मोहमल्ल को जीतूं रवामी सम्यक ज्ञान प्रकाश करूँ॥१५॥ मै मिथ्यात्त्वतिमिर को हरकर अविरत को भी दूरकरूँ। क्रम क्रम से योगो को हरकर अष्टकर्म चकचूर करूँ ।।१६।। यही भावना है अन्तर मे कब प्रभु पद निर्ग्रन्थ वरूँ। पद निर्ग्रन्थ पथ पर चलकर मै अनत भव अन्त करूँ।।१७।। ॐ ही श्री मल्लिनाथ जिनेद्राय गर्भ जन्मतप ज्ञानमोक्ष कल्याणक प्राप्ताय पूर्णायँ नि ।